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________________ २३ उवासगदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है। धमण-परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे। उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं। TOTAद . विषय-वस्तु भगवान महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म---इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मनि के लिए पांच महावतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमगोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है। व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है। इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तर तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मनि का आचार-धर्म अनेक आगमों में मिलता है कि गृहस्थ का आचार-धर्म मुख्यत: इसी आगम में मिलता है। इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है। इसकी रचना का मख्य प्रयोजन ही गृहस्थ के आचार का वर्णन करना है। प्रसंगवश इममें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सन्दर चर्चा हुई है। उपासको की धामिक कसोटी को घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखने थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है। उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं -दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति रात्रिबोजन विरति ग्रहाचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था। व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा-ये दो पद्धतिया हैं। समवायांग और नन्दी सूत्र में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमा का उल्लेख है। १. कसायपाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003564
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages168
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_antkrutdasha
File Size3 MB
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