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________________ २२ का अर्थ है--भगवान् महावीर की धर्म कथा'। वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है। किन्तु समवायांग और नंदी में जो अंगों का विवरण प्राप्त है उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा --यह अर्थ संगत नहीं लगता। वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्म कथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है। प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञान) है। इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्त्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल-शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं। आठवें अध्ययन में कूप-मंदूक की कया बहुत ही सरस शैली में उल्लिखित है। परिवाजिका चोखा जितशत्र के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है--'तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्त:पुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा---'तुम कूप-मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप-मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा। चोखा ने कहा--'कुएं में एक मेंढक था । वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कृप, तालाब और जलाशय नहीं देखा। वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था। एक दिन एक समदी मेंढक उस कूप में आ गया । कूप-मंडुक ने कहा--तुम कौन हो ? कहां से आए हो? उसने कहा--- मैं समद्र का मेंढक हैं, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा--वह समुद्र कितना बड़ा है ? समद्री मेंढक ने कहा----वह बहुत बड़ा है । कूप-मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा--क्या समद्र इतना बडा है ? सुमद्री मेंढक ने कहा---इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंडूक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फूदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा--इससे भी बहत बड़ा है। कूप-मडूक इस पर विश्वास नहीं कर सका । इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों को दष्टि से प्रस्तुत आगम वहत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं। १.जन साहित्य का इतिहास, पूर्व-पीठिका, पत्र ६६० । २. Stories From the Dharma of NAYA ई० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३.(क) समवरो, पइग्ण गसमवायो, सून ६४ (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. तायाधम्मकहाओ मा१५४, पृ० १५६,१८७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003564
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages168
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_antkrutdasha
File Size3 MB
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