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________________ ३५. तीर्थकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता है। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं। इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्विमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्णु । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है। कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है । - 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं--अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है । विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासुदेवकृष्ण के छोटे भाई गजसुकुमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है । छठे वर्ग में अर्जुनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य वनताबिगड़ता है— इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनुष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं । अतिमुक्तक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं भगवान् महावीर ने उपवास और ध्यान — दोनों को स्थान दिया था । तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं । भगवान् महावीर ने अपने साधना काल में उपवास और व्यान -- दोनों का प्रयोग किया था यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बस क्यों दिया गया ? विस्मृति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है । १. सत्यार्थयातिक १२० ० ७३ इत्येते दन वर्धमानती करतीर्थ एवमुवमादीनां द्वयोविस्तीर्थं ध्वन्येऽन्ये च दश दशाननारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य फूलनकर्मपादाः दम अस्यां वयंग्ये इवि अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहुड भाग १ पृ० १३० : अंतयडदसा नाम अंगं चउव्विहोवसों दारुणे सहिऊण पाठिहर लढण जिम्वाणं गदे सुदंसणादि-दस-दस - साहू तित्यं पठि वण्णेदि । २.४३तो वाचनान्तरापेक्षाणीयानीति सम्भावयामः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003564
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages168
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_antkrutdasha
File Size3 MB
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