Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 157
________________ ० अणुतरे जाय केवल अतुरियं जाय अनंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे आव पचाहि अरिनेमिस्स जाव पन्थइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि ० आपुच्छामि देवाप्पियाणं आरुजाव सिद्धे आहेवच्च जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जिता ईसर जाव सत्यवाहाणं उच्च जाव अडइ उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाय अडामो उच्च जान पडिलाइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर० जम्मुक्त जाय अणुपते उराले जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदसे इ उवागच्छित्ता जान बंदद ओहर जाव भिया ओह जाब वि करयल० करे जहा गोमसामी जान अट काए जान दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहिया कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं Jain Education International ३८ ३।१२ ३।२३ ३२५१ ३।१०२ રાજ ५१११ 515 ६१९५ १।१६ २३।१०१ १।१४ ३१०१ १।१४ ६७६ ६।५५ ३१२६,३० ६६७८ ६८० ३१२५, २६ ३०६१ ३॥६० ६।५२ ३१५० ८१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३।४३ ५१२२६१३५,४१ ६।५४ शब्द ३७६ १११६ 디투 For Private & Personal Use Only वृति भ० २२१०८ उवा० २१२२ शह ३१७० ३।७६ ठा० ७/१३ नाम १।१।११४ ना० ११५१८७ ३१६६-६२ ना० १५२६ १८७६६ ना० २।५।६ भ० २२१०६ भ० २२१०६ ३१२४ २०२४ ३।२३ ३२४, २५ ना० १ १/६६ ना० १।१।१६२ ५:२६ ना० १।१।२० भ० २/६४ ६/५७ ३/६१ ३०४३ ना० १|१|३४ ना० १।१।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १।१।१०६ राय० सू० ६६८ ५।२१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168