Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 149
________________ उप्पण्णापदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदंसणपरे जाव महिइए जाव तच्च० उरालाई जाव भुंजमा उरालाई जाव विहरिसए उराले जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाव किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आनंदो तव अपच्छिम ० एक्कारसमं जाव आराहेइ एवं एक्कारस उपास पडिमाओ तहेब जाव सोहमे कप्पे अरुणभए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्यं सव्वं जाव कणीयसं जाब आईच अहं तं उज्जलं जाव अहिया से मि एवं दक्खिणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्च पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं कणीयसं, एक्केक्के पंच सोल्लया तब करे, जहा पुतणीपियस्स, नवरं एक्केक्के पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिणि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओमणसंकरपा जाय भिवाइ कज्जेमु य आपूच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्ठपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलीपियरस ता भद्दा भगद एवं से जहा चुमणीपियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे कल्लं जाव जलते Jain Education International ३० ७।११.१० ७।४५ ८२७ १६ ३१५०-५२ पा३५ 쿠두 १।६३ ६।३५.४१ ३२४४ १,६६; ८१३७ ४ ४१ ४२२-३८ २।४५ ८४२ १८५६ ६१३३,३४ ७७ ७।२२ ४१४५-५२ १५७७ १२ For Private & Personal Use Only ७१० ७/१० ८११ ८११८ २।५३-५५ १/६४ ११६५ ११६२ २१५०-५६ ३।२७-३८ १।६६ સા ३।२२-३८ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १।१३ २१८,१६ 61 ७७ ३।४५.५२ ओ० सू० २२ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168