Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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५६०
अंतगडदसाओ
कालगएहिं परिणयवाए वड्डिय-कुलवंसतंतु-कज्जम्मि निरावयक्खे अरहो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खलु अम्मयायो ! माणुस्सए भवे अधुवे अणितिए असासए वसणसग्रोवदवाभिभूते विज्जुलयाचंचले अणिच्चे जलबुब्बुयसमाणे कुसग्गजलबिंदुसन्निभे संझभरागसरिसे सुविणदंसणोवमे सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे । से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुद्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छा मि णं अम्मयाओ! तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे अरहयो अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराप्रो अणगारियं पव्व
इत्तए । ७०. तए णं तं गयसुकुमालं कुमारं अम्मापिय रो एवं वयासी-इमे य ते जाया !
अज्जय-पज्जय-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सुवण्णे य कसे य दूसे य मणिमोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाओ कुलवंसानो पगाम दाउं पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहनो अरिट्टनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं
पव्वइस्ससि ॥ ७१. तए णं से गयसुकुमाले अम्मापियरं एवं वयासो-तहेव णं तं अम्मयाअो! जं
णं तुब्भे ममं एवं वयह –' इमे ते जाया ! अज्जग-पज्जग-पिउपज्जयागए सुबहु हिरण्णे य सूवण्णे य कसे य दुसे य मणि-मोत्तिय-संख-सिल-पवाल-रत्तरयणसंतसार-सावएज्जे य अलाहि जाव आसत्तमाप्रो कुलवंसायो पगाम दाउ पगामं भोत्तुं पगामं परिभाएउं । तं अणुहोही ताव जाया ! विपुलं माणुस्सगं इड्डिसक्कारसमुदयं । तमो पच्छा अणुभूयकल्लाणे अरहो अरिटुनेमिस्स अंतिए मंडे भवित्ता अगाराग्रो अणगारियं पव्वइस्ससि ।" एवं खल अम्मयानो ! हिरण्णे य जाव सावएज्जे य अग्गिसाहिए चोरसाहिए रायसाहिए दाइयसाहिए मच्चुसाहिए, अग्गिसामण्णे चोरसामण्णे रायसामण्णे दाइयसामण्णे मच्चुसामण्णे सडण-पडण-विद्धंसणधम्मे पच्छा पुरं च णं अवस्सविप्पजहणिज्जे। से के णं जाणइ अम्मयानो ! के पुष्वि गमणाए के पच्छा गमणाए ? तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अरहनो
अरिटुनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए । ७२. तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति गयसुकूमालं
कुमारं बहहिं विसयाणुलोमाहिं आघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विण्णवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा सण्णवित्तए वा विण्णवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पण्णवणाहिं पण्णवेमाणा एवं
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