Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 121
________________ अनंते जाव समुपणे अणते गाणे समुपणे जाव सिद्धा अणगारवण्णओ भाणियन्वो अणगारे जाव इहमागए अणगारे जाव पज्जवासमाणे अतिराए चैव जान गंघेणं अणिट्ठा जाव अमणामा अणिट्टा जाय दंसणं अनिद्रा जाव परिभोगं अणुतरे पुरवितं चैव जावत या भुक्तभोगी समणस्स भगवओ जाब पन्यदस्ससि अण्णं च तं विलं अण्णगण्णं जाव समणे अण्णाए जाव निंबोलियाए अब्भणुण्णाए जाव पव्वइत्तए अम्भुज्जरणं जान विहरितए अम्मुट्ठेत जावंदसि अभिसिंचs जाव पडिगए अभिचि जाव राया जाए विहरइ अमध्ये जाव सिजीए १।१।११३ १६/२०७ १०१३/३८ अथत्विया जाव ताहि इद्वाहि जाद अणवर १।१।१४३ अत्थामा जाव अधारणिज्ज • १११६।२५३ १८१२८ अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया अम्मदाओ जाव पव्वद्दत्तए अम्मयाओ जाव सुद्धे अयमेयारूचे जाव समुपज्जित्था अरहृष्णय जाव वाणियगाणं अरहणग संञ्जलगा अरिनेमि जाव गमित्तए अरिने मिस्स जाव पब्बइतए अवगुणे जाव पडिगए १२२५ १।१६।३२४ १।१।१९४ शश६८ २।११४ १।१२।३ १।१६ १७ Jain Education International १११४/४३ १०१४१५० १।५।१२२ १८७४ १.१६/२५ १।१२।३९ ११५ ११५१।१६।२८ ११५२६७ १।१६।२८० ११५/६३-६५ १।१२।१५ १।१।१०१ १।१।१२ १५१६५ १२८६७ शायर १।१६।३२० ११५/२० १।१६६५ For Private & Personal Use Only वृत्ति ११५२८४ ओ० सू० १६४ १० सू० ५२ 21219 १६४२ ११११४६ ११४।३६ १।१४/३६ ओ० १।१।११२ १८२०५ १/५२५३ जो० सू० ६८ १।१६।२१ १।५।१२२ उवा ०।२।२२ १।५।१२२ १।१६१८ १।१।१०४ १।५।१२४ ११५६६ १।१।१६१ १।१।११७-११९ १८१२४७ १११।१०७ १।१।३३ १।१।४८ १२६६४ १२६६६ १।१६।३३४ १|१|१०६ १।१६।६१ www.jainelibrary.org

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