Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 136
________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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