Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तइओ वग्गो—अट्ठमं अज्झयणं (गए)
चिययानो फुल्लियकिंसुयसमाणे खरिंगाले कहल्लेणं गेण्हइ, गेण्हित्ता गयसुकुमालस्स अणगारस्स मत्थए पक्खिवइ, पक्खिवित्ता भीए तत्थे तसिए उठिवग्गे संजायभए तो खिप्पामेव अवक्कमइ, अवक्कमित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स सरीरयंसि वेयणा पाउन्भूयाउज्जला विउला कवखडा पगाढा चंडा दुवखा दुरहियासा। तए ण से गयसुकुमाले अणगारे तस्स पुरिसस्स मणसा वि अप्पदुस्समाणे तं उज्जलं जाव दुरहियास वेयणं अहियासेइ। तए णं तस्स गयसुकुमालस्स अणगारस्स तं उज्जलं जाव दुहियासं वेयणं अहियासेमाणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्यज्झवसाणेणं तदावरणिज्जाणं कम्माणं खएणं कम्मरयविकिरणकरं अपुवकरणं अणुप्पविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्वाधाए निरावरणे कसिणे पडिपुणे केवलवरणाणदंसणे समुप्पणे । तो पच्छा सिद्धे । तं एवं खलु कण्हा ! गयसुकुमालेणं अणगारेणं साहिए
अप्पणो अट्ठ। १०२. तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिटुमि एवं वयासी-कैस' ण भते ! से
पूरिसे अपत्थियपत्थिए', 'दुरंत-पंत-लाखण, होणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरिधिइ-कित्ति -परिवज्जिए, जेणं ममं सहोदरं कणीयसं भायरं गयसुकुमाल अणगारं अकाले चेव जीवियानो ववरोवेइ ? तए णं अरहा अरिहने मी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी—मा णं कण्हा ! तुम तस्स पूरिसस्स पदोसमावज्जाहि । एवं खलु कण्हा ! तेण पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्ण। कहणं भंते ! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे ? तए णं अरहा अरिनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–से तूण कण्हा ! तुम भमं पायवंदए हव्वमागच्छमाणे वारवईए नयरीए एगं पुरिसं'- जुग्णं जराजजरिय-देहं पाउरं झूसियं पिवासिय दुब्बलं किलंतं महइमहालयायो इट्रगरासीमो एगमेगं इट्टगं गहाय बहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिहं अणुप्पविसमाणं पाससि । तए णं तुमं तस्स पुरिसस्स अणुकंपणट्टाए हत्थिखंधवरगए चेव एग इट्टगं गेण्हसि, गेण्हित्ता वहिया रत्थापहाम्रो अंतोगिहं अणुप्पवेससि । तए णं तुमे एगाए इट्टगाए गहियाए समाणीए अणेगेहिं पुरिससएहिं से महलाए इट्रगस्स रासी बहिया रत्थापहायो अंतोघरंसि ° अणुपवेसिए। जहा णं
३. सं० पा०-पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए।
१. से के गं (घ)। २. सं०पा०-अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए।
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