Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 106
________________ अट्टमो वग्गो बीयं ग्रज्भवणं ( सुकाली) १५. तए णं सा काली ग्रज्जा ग्रज्जचंदणाए अब्भणुष्णाया समाणा संलेहणा-भूसणाभूसिया जाव' विहरइ || १६. तए णं सा काली ग्रज्जा श्रज्जचंदणाए ऋतिए सामाइयमाइवाई एक्कारस गाई जित्ता हुडपुण्णाई श्रट्ठ संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए ग्रत्ताणं सित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव चरिमुस्सासेहिं सिद्धा ।। १७. निक्खवओ ।। वीयं यणं सुकाली सुकालीए कणगावलितव-पदं १८. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्यभद्दे चेइए । कोणिए राया ।। १६. तत्थ णं सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया, सुकाली नाम देवी होत्था । जहा काली तहा सुकाली व निवखता जाव' यहूहि जाव तोकस्मेहिं पाणं भावेमाणी विहरइ ॥ १. प्र० ८।१४ । २. ओ० सू० १५४ ३. चरिमुसासनिस्सासहि (ख, ग ) 1 ४,५. ० ६।६ । २०. तए णं सा सुकाली ग्रज्जा अण्णया कयाइ जेणेव प्रज्जचंदणा अज्जा' "तेशेव उवागया, उवागच्छित्ता एवं वयासी । इच्छामि गं ग्रज्जाओ ! तुब्भेहि अभगुणाया समाणी कणगावली-तबोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरितए । एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं: -तिसु ठाणेसु श्रट्टमाई करेड़, जहि रयणावलीए छट्टाई ! एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा वारस य ग्रहोरता । चउण्ं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा । सेसं तहेव" । नव वासा परियाप्रो जाव' सिद्धा ॥ Jain Education International ५६६ ६. सं० पा० - प्रज्जा जाव इच्च्छामि । ७. प्र० ८।१२-१६ । ८. ०२११६ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168