Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Antgaddasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 66
________________ तइओ वग्गो --- प्रट्टमं अभयणं ( गए ) देवईए सोमाकुल वसा-पदं ६७. तए णं सा देवई देवी तं प्रणिट्ठ अकंतं अप्पियं श्रणुष्णं श्रमणामं असुयपुब्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्वेर्ण अभिभूया समाणी सेयागयरोमकूपगलंत - चिलिणगाया सोयभर पवेवियंगी नित्तेया दीण-विमण वयणा करयल-मलिय व्व कमलमाला तक्खणश्रो लुगादुब्बलसरीरलावण्णसुन्न- निच्छाय-गयसिरीया पसिढिलभूसण- पडतखुम्मियसंचण्णियधवलवलय- पब्भट्ट - उत्तरिज्जा सूमालविकिष्ण के सहत्था मुच्छावसagar - गरुई परसुनियत्त व्व चंपगलया निव्वत्तमहे व्व इंदलठ्ठी विमुक्कसंधिबंधा कोट्टमस सव्वगेहिं वसत्ति पडिया ॥ देवईए गयसुकुमारस य परिसंवाद-पदं ६८. तए णं सा देवई देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगार मुहविणिग्गय-सीयलजलविमलधाराए परिसिंचमाणनिव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविट-वीयणगजणिवाणं सकुसिएणं अंतेउर-परिजणेणं प्रासासिया समाणी मुक्तावलि - सन्निगास पवडंत-सुधाराहि सिंचमाणी पोहरे, कलुण-विमण-दीणा रोयमाणीकंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी गयसुकुमालं कुमारं एवं वयासी - तुमं सिणं जाया ! अम्हं एगे' पुत्ते इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए वहुमए श्रणुमए भंडकरंडगसमाणे रणे रणभूए जोविय - उस्सासिए हियय-मंदि-जणणे उंबरपुप्फं व दुल्ल हे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणभवि विप्पयोगं सहितए । तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा अम्हेहि कालगएहि परिणयवए वड्ढिय कुलवंसतंतुकज्जम्मि निरावयक्खे रहो अरिनेमिस्स ग्रंतिए मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो गरियं पव्वइस्ससि || ६६. तणं से गयसुकुमाले प्रम्मापिऊहिं एवं वृत्ते समाणे सम्मापियरो एवं वयासीतहेव णं तं अम्मो ! जहेव णं तुभे ममं एवं वयह - "तुमं सिगं जाया ! अहं गेपुते इट्टे कंते पिए मणुष्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंङग समाणे रयणे रयणभूए जीविय - उस्सासिए हियय-मंदिजणणे उंबरपुष्कं व दुल्लहे सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए ? नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पयोगं सहित्तए । तं भुजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताव वयं जीवामो । तम्रो पच्छा अम्हे हिं तेन 'एगे' इति विशेषणस्थ संगतिर्भविष्यति । १. देवक्या अन्येषां पुत्राणां बालत्वं नानुभूतम् । केवलं गजसुकुमालस्यैव लालन-पालनं कृतम् । ५५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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