Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ०५ सू० १ नारकादिनिरूपणम् धर्मकथां श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत् , ततो विनयेन पर्युगलीनः प्राञ्जलिपुटो भूत्वा गौतमः, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण आदीत् -' संतरं मंते । नेरइया उववज्जंति ? निरंतरं नेरइया उवाज्जति ?' हे मदन्त ! कि सान्तरं-सव्यवधानम् , एकभवाद् भवान्तरगमने व्यवधाने नेत्यर्थः, नैरयिका उपपद्यन्ते ? कि वा निरन्तरं-निरवच्छिन्न-व्यवधानरहितम् , एकभवाद् भावान्तरगमने अव्यवधानेनेत्यर्थः, नैरयिका उपपद्यन्ते ? भगवानाह- गोयमा ! संतरं पि नेरइया उबजंति, निरं नारकादिवक्तव्यता'रायगिहे जाव एवं क्यासी' इत्यादि । टीकार्थ-पांचवें उद्देशे में नैरयिकादिकों की वक्तव्यता कही गई है फिर भी सूत्रकार इस छठे उद्देशे में प्रकारान्तर से उसी वक्तव्यता की प्ररूपणा कर रहे हैं-इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है-'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहनगर में यावत् इस प्रकार से पूछा यहां यावत् शब्द से ऐसा पाठ यहां लगाना चाहिये 'नगरे स्वामी समवसृतः आदि' अर्थात् राजगृहनगर में भगशन महावीर स्वामी पधारे धर्मकथा सुनने के लिये परिषदा निकली, धर्मकथा सुनकर फिर वह वहां से पीछी चली गई-इसके बाद विनय से पर्युपासना करते हुए गौतम ने दोनों हाथ जोडकर इस प्रकार से पूछा-'संतरं भंते ! नेरइया उववज्जति, निरंतरं नेरच्या उववज्जति' हे भदन्त ! नरयिक व्यवधान सहित समयादि अन्तर सहित उत्पन्न होते हैं, या निरन्तर-व्यवधान रहित उत्पन्न होते हैं ? अर्थात् समयादि के अन्तर विना उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में -ना२६ तव्यता“ रायगिहे जाव एवं वयासी" त्याह ટીકાથ–પાંચમાં ઉદ્દેશકમાં નારકાદિકેની વકતવ્યતાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું. આ છઠ્ઠા ઉદ્દેશામાં પણ સૂત્રકાર નારકની જ વકતવ્યતાનું प्रतिपाहन ४२-" रायगिहे जाव एवं क्यासी" राड नगरमा महावीर પ્રભુ પધાર્યા ધર્મકથા સાંભળવા માટે પરિષદા નીકળી, ધર્મકથા સાંભળીને પરિષદ પાછી ફર્યા બાદ વિનયપૂર્વક પ્રભુની પર્યું પાસના કરીને, બે હાથ જોડીને गौतम स्वामी महावीर प्रसुने । प्रमाणे प्रश्न पूछे छे-"संतरं भो ! नेरइया उववज्जति, निरंतरं नेरइया उववज्जति ?" भगवन् ! ना२। व्यवधानसहित (એક ભવમાંથી અન્ય ભવગમનમાં જે અત્તર પડે છે તે અન્તરસહિત) ઉત્પન્ન થાય છે. કે નિરંતર-વ્યવધાનરહિત-ઉત્પન્ન થાય છે? એટલે કે એક ભવમાંથી ભવાન્તર ગમનમાં વિના અતરે ઉત્પન્ન થાય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 906