Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 11 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 22
________________ भगवतीस्ने पण्णसे !' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त कुत्र खलु स्थाने चमरस्य असुरेन्द्रस्य अनुर. राजस्य चमर वश्चोनाम आवासः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेगं तिरियमसंखेज्जे दीपसमुद्दे' हे गौतम ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे-दक्षिणदिग्भागे तियग् असंख्येयद्वीपसमुद्रोल्लं. घनानन्तरम् अरुणवरद्वीपस्प बाह्य वेदिका प्रान्तमागात् अरुणवरसमुद्रे द्वाचत्वारिंशत्शतसहस्रयोजनगमनानन्तरं चमरेन्द्रस्य तिगिच्छककूटनामा उत्पातपर्वतोऽस्ति, यत्रागत्य तिर्यग्लोकं जिगमिषुश्वमरेन्द्रः उत्पतनं करोति, स एव उत्पातपर्वत उच्यते, तस्य दक्षिणदिग्भागे पश्चाशत् सहस्राधिकपश्चत्रिंशरलक्षोत्तरपञ्चपञ्चाशत् कोटिषट्कोटिशतयोजनमरुणोदकसमुद्रे तिर्यग्गमनानन्तरम् , अधोभागे रत्नमरेन्द्र असुरराज चमर का चमरचंचा नामका आवास कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवे दीवे मंद रस्त पव्वयस्त दाहिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवममुद्दे' जंबूदीप नामके द्वीप में जो सुमेरुपर्वत है-उस सुमेरुपर्वत की दक्षिण दिशा में तिर्थग असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करके अरुणवर नाम का एक द्वीप आता है। इस दौर की बाह्यवेदिका के अन्तिम किनारे से अरुणवर समुद्र में ४२ लाख योजन जाने के बाद चमरेन्द्र का तिगिच्छकूट नामका एक उत्पात पर्वत आता है। चमरेन्द्र को जब तिर्यग्लोक में आना होता है, तब वह इस पर्व पर आकर उत्पतन करता है। इस कारण इस पर्व का नाम उत्गत पर्वत कहा गया है। इस उत्पातपर्वन के दक्षिणदिग्भाग में ६५५ करोड ३५ लाख पचास आवासे पण्णत्ते ?” 3 भगवन् ! मसुरेन्द्र, असु२७।२२।०८ यभरनी રાજધાની ક્યાં કહી છે? भार प्रभुन। उत्तर-“ गोयमा !" गौतम ! " जंबुद्दीचे दीये मंदरस्स पब्वयस्स दाहिणेणं तिरियमसंखेज्जे वीवस मुद्दे० " ran५ नामना દ્વીપમાં જે સુમેરુ પર્વત છે, તે પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં તિર્યગ્ર અસંખ્યાત હીપસમદ્રોને પાર કરવાથી અણવર નામનો એક હીપ આવે છે. આ દ્વીપની બારા વેદિકાના અન્તિમ છેડાથી, અરુણુવર સમુદ્રમાં ૪૨ હજાર જનનું અંતર પાર કરવાથી ચમરેદ્રને તિગિચ્છકૂટ નામને એક ઉત્પાત પર્વત આવે છે. ચમરેન્દ્રને જ્યારે તિર્યશ્લોકમાં આવવું હોય છે, ત્યારે તે આ પર્વત પર જઈને ઉત્પનન કરે છે. એટલે કે આવે છે, તે કારણે આ પર્વતને ઉત્પાતપર્વત કહ્યો છે. આ ઉત્પાદ પર્વતની દક્ષિણ દિશામાં ૬૫૫ કરોડ ૩૫ લાખ ૫૦ હજાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૧

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