Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha

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Page 7
________________ अही मत्र्यलोकमा छ माटे ए रीते रावत् पंचेंद्रियतियंचयोनिको विषे पण जाणवू. मनुष्याने तो काळनो ख्याल हाय छे. देवाने काळनो ख्याल नथी होतो. पावापत्य स्थविरे। अने श्रमण भगवंत महानीर, असंख्य लोकमां अनंत रात्री दिवसो शी रीते ? पुरुषादानीय पार्श्व अर्थतनी साक्षी. लोकस्वरूप. पाश्वापरयोने थएली श्रमण भगवंत महावीरनी 'सर्वज्ञ अने सर्वंदी' तरीकेनी अळखाण. चार याम मूकी पांच यामनो स्वीकार. सिद्धत्व प्राप्ति. देवलोकानी गणत्री. संग्रहगाथा विहार. शतक ५. उदेशक १०. पृ० २५३-२५४. चंपा. पंचम शतकनो प्रथम उद्देशक. चंद्रनिरूपण. शतक समाप्ति. शतक ६. उदेशक १. पृ० २५५-२६०. वेदनावालो? मवाळा ? ना. एना कारमा पोचा- सूका पूळो अने पचद्रियेने ए चारे कर वेदना. आहार. महाश्रव, सप्रदेश. तमस्काय. भव्य. श.लि. पृथिवी. कर्म. अन्यतीर्थिक. महावेदनावाळो, महानिर्जरावाळो? के महानिर्जरावाळो. महावेदनावाळो ? ए बेमा कोण उत्तम! प्रशस्त निर्जरावाळो. छट्ठी सारमामा रहेना- रयिका महावेदनावाळा छे ? हा. ते नरयि को श्रमणो करता मोटी निर्जरावाळा? ना. एना कारणमा चोक्ख। अने मेला वस्त्रनुं उदाहरण. कर्दमराग. खंजनराग. नैरपिकेमा पापो ची कणां. लोहारनी एरणने! दाखला. श्रमणानां कर्मे पोचा- सूको पूळो अने अग्नि. पाणीनुं टीपु अने उनुं धगधगतुं ले.ढार्नु कडायु. करण। केटलां? चार-मनकरण, वचनकरण, काय करण, कर्मकरण. न.यिकाने, पंचेंद्रिये ने ए चारे करण, एकेंद्रियाने बे करण-कायकरण, कर्मकाण. विकलेंद्रियाने त्रण करण:-वचनकरण. काय करण. कर्मकरण. करण अने शातावेदना. ए रीते असुरकुमार यावत् स्तनित. कुमार. पृथिवीकाय औदारिक शरीरवाळा अने देवा विषे विचार महावेदना अने महानिर्ज1. मदावेदना अमे अल्पनिर्जरा. अल्पवेदना अने महानिरा. अल्पवेदना अने अल्पनिरा. प्रतिगाधारक मुने महा वेदनावासो अने महानिर्जरावाळो. छट्ठी सातमीना नरयिका महावेदना अने अलनिरा. शैलेशोवाळो अनगार अल्पवेदना अने महानिर्जरा. अनुत्तरापातिक देवा अल्पवेदना अने अल्पनिर्जरा. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे. संप्रगाथा. उदेशकं समाप्ति. शतक ६. उदेशक २. पृ० २६१-२६८. राजगृह. प्रज्ञापनानो आहार उद्देशक. विहार. शतक ६ उदेशक ३. पृ० २६९-२८६. परवल पक्षल. प्रयोग, विस्रसा. सादिक. कर्मस्थिति, स्त्री. संयत सम्यग्दृष्टि. संझी. भव्य. दर्शन, पर्याप्त. भाषक. परित्त. ज्ञान. ये ग. उायोग. आहारक. सूक्ष्म, चरम. पंध, अ म्ल, दे भगवन् ! महा मवाळाने सर्वतः पुरले। चें।टे? सर्वतः पुद्गलेना चय थाय? निरंतर पद्गलो चोटे? यावत् निरंतर पुगलानो उपचय थाय? अने एनो आत्मा दूरूपणे, अनुभग्णे अने अनिष्टपणे वारंवार परिणमे ? हा. तेना हेतु. अहत, धात अने तन्त्रोद्गत (ताजा) ननु उदाहरण. अल्पकर्मवाउने सर्वतः पुद्गलेा भेदाय? यावत् परिविधंस पामे ? अने एना आत्मा सुरूपपणे, शुभरणे अने इष्टपणे वारंवार परिणमे ? हा. तेने। हेतु. जलिन, पङ्कित, मलिन अने रजवाळा पण पाणीथी धे।वाता वरना दाखला, वस्त्र अने पुद्दलाना उपचय, श्ये ग. वि. सा. जीव अने कीना उपचय, ए उपचय प्रयोगसा, पण विखसा नहि. मनप्रयोग, वचनप्रयोग, कार प्रयोग, सर्व पंचेंद्रियो ने एत्रणे प्रयोग. पृथिवी यावत् वनसति ने एक (काय) प्रयोग. विकले. नियोने बे प्रयोग, बचन प्रयोग अने काय येग, देवाने त्रणे प्रये ग. वस्रने लातो पद्लेोपचय सादि सांत? सादि अनंत? अनादि सांत? के अनादि अत? ए ता सादि सांत एज प्रकारे जीवोने लगता पुद्गोपचय विषे पृच्छा. ईयपथबंधकना कर्मपुद्गलापचय सादि सांत. भव्यना अनादि सांत. अभव्य ना अनादि अनंत. को कर्म दलोपचय सादि अनंत नथी. 'वन स.दि सात छे ? सादि अनंत छे ? अनादि सांत छ ? अनादि अनंत छ। वखता सादि सांत छ ? ए प्रमाणे जी विषे पृच्छा. नरयिक तिर्यच मनुष्य अने देवो सादि सांत. सिद्धो सादि अनंत. भव्य। अनादि सांन श्रव्ये। अनादि अनंत, व.र्मप्रकृति केटली? आठ ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय यावत् अंतराय. ए आटेनी अबाधाकाळसहित बंधस्थिति. ए कम स्व। बांधे पुरुष बांधे ? के नपुंसक बांधे ? एत्रणे बांधे. जे स्त्री, पुरुष के नपुंसक न हेय ते ए कमें। बांधे अनेन बांधे अययकमने स्त्री पुरुष के नपुंसक बधे? बांधे अने न पण बांधे. संपत अपंगा अने संयवासयतकृर्तक ए कर्म. बंधने लगता प्रो. एज प्रमाणे सम्प, दृष्टि मिथ्यादृष्टि सम्पमिथ्या दृटि संझी अशी नोसंधी असेही भासिद्धिक अभवसिद्धिरु नोभव. सिद्धिकनोअभव सिद्धिक चक्षुदर्शनी अचक्षदर्शी अवधिदर्शनी केवलदर्शनी पर्याप्त आर्याप्त नो यतअपर्याप्त भाषक अभाषक परित्त अपरित्त नोपरित्तनोअप रित्त मतिज्ञानी अतज्ञानी अवधिज्ञानी मनःपर्यायज्ञानी केवलज्ञानी मति अज्ञानी श्रुतअज्ञानी अवधिअज्ञानी (विभंगी) मनोये.गी वचोये गी जायेगी अयोगी आ.पियेगी निराकारोपयोगी आहारक अनाहारक सूक्ष्म वादर नीसूक्ष्मनोवादर चरम अरम ए बधाने उद्देशीन कर्मबंधने लगतो विचार. स्त्रीवेदक पुरुषवेदक नपुंसकवेदक अने अवेदक जीवो।। अलाचहुना हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे. शतक ६. उदेशक ४. पृ० २८७-३००. हे भगवन् ! शु जीव कालादेशथी सप्रदेश छे के अप्रदेश छे? नियमेन सप्रदेश. " मणे नै यि अने काला देश. जीवो अने कालादेश, नैरयिका अने कालादेश. ए रीते यावत स्त नितकुमारो. पृथिवीकायिका अने कालादेश ए रीते यावत् वनस्पतिकालिके, बाकीना सिद्धो सुधीना जीवो नैरयिकानी पेठे. आहारक अने कालादेश, भंगत्रय, अनाहारक अने कालादेश, भंगषटू सि अने कालादेश, भगत्रिक, भवसिद्धिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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