Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Jinagama Prakashan Sabha
View full book text
________________
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
श्रीअभयदेवसूरिविरचितवृत्तिसहित.
खण्ड २.
शतक ३.-उद्देशक-१.
मोका नगरी.-नंदन चैत्य.-श्रीमहावीर प्रभुनु आगमन अने अग्निभूतिनी पर्युपासना.-विकुर्वणा-(रूपो फेरववानी शक्ति ).-चमरेंद्र, त्रायस्त्रिंशो, सामानिको अने पट्ट
राणीओ.-अभिभूति अने वायुभूति.-वायुभूतिने संदेह.-वायुभूति अने श्रीमहावीर.-संदेहर्नु निवारण.-वायुभूतिनी अग्निभूति प्रत्ये क्षमानी याचना.-वायुभूति, अग्निभूति अने श्रीमहावीर.-दक्षिणेद्रो अने अग्निभूति, उत्तरेंद्रो अने वायुभूति.-तिष्यकनी विकुर्वणा.-अग्निभूतिनो विहार--वायुभूति.-ईशानेंद्र, कुरुदत्त अने विकुर्वणा.-यावत्-अच्युत देवलोक.-श्रीमहावीर प्रभुनो विहार.-राजगृहमा आगमन.-उत्तरार्धना इंद्रनु आगमन, देवर्द्धि-दर्शन अने संहरण.देवर्द्धि संबंधे प्रश्न ?-कूटाकार शाळानुं दृष्टांत. देवर्धिनी प्राप्तिनो उपाय.-मौर्यपुत्र तामली.-प्राणामा प्रव्रज्या.-चंद्र माटे बलिचंचामां देवोनुं संमेलन.देवोनो तामलीने पोताना इंद्र थवा माटे अत्याग्रह.-नियाणु न करवाथी तामलीनुं ईशानेंद्रपणे थवं. ते वातनी बलिचंचामां जाण.-क्रोधेला बलिचंचा. वासीओए तामलीना शबनी करेली अवगणना.-ईशानवासीओ द्वारा ईशानेंद्र (तामली)ने जाण.-कोपेला ईशानेंद्रनी दृष्टिनो प्रभाव.-बलिचंचानुं बळवू.देवोनी नाशमाग.-ईशानेंद्रनी बलिचंचावासीओए करेली प्रार्थना.-दृष्टिनुं संहरण.-ईशानेंद्रनुं आयुः.-ईशानेंद्र ( तामली )नुं मुक्तिस्थळ.-उत्तरार्थना
अने दक्षिणार्थना इंद्रोनो मेलाप, वार्तालाप, सह कार्यक्रम.-विवादे सनत्कुमारनुं स्मरण.-निवेडो.-सनत्कुमारनुं भव्यपणुं.-उद्देशक समाप्ति अने विहार.१.-गोहाः
१.-आ त्रिजा शतकमां दश उद्देशको छे. तेमां प्रथम केरिसी विउव्वणा चमर किरिय जाणित्थि नगरपाला य, अहिवइ
उद्देशकमां चमरनी विकुर्वणा शक्ति विषे प्रश्नोत्तरो छे. चमरना
उत्पात विषे हक कहेवा सारु बीजो उद्देशक छे. क्रिया संबंधे इंदिय परिसा ततियाम्मि सए दस उद्देसा.
प्ररूपण करवा त्रिजो उद्देशक छे. 'देवे विकुर्वेल यानने साधु जाणे?' इत्यादि वातना निर्णय माटे चोथो उद्देशक छे. 'साधु, बहारनां पुद्गलोनुं ग्रहण करीने स्त्रीवगेरेनां रूपो करी शके छे' ए संबंधी निर्णय माटे पांचमो उद्देशक छे. नगर संबंधे छट्ठो उद्देशक छे. लोकपालो विषे सातमो उद्देशक छे. अधिपतिओ विषे आठमो उद्देशक छे. इंद्रियो संबंधे नवमो उद्देशक छे अने चमरनी सभा संबंधे दशमो उद्देशक छे.
१. मूलच्छायाः कीदृशी विकुर्वणा चमरः क्रिया जानीयाद् नगरपालाश्च, अधिपतिः इन्द्रियं पर्षत् तृतीये शते दश उद्देशाः-अनु.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 358