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ठाणं (स्थान)
स्थान २: आमुख
नंदी के वर्गीकरण से प्राचीन प्रतीत होता है। इसमें सांव्यवहारिकप्रत्यक्ष का उल्लेख नहीं है। प्रत्यक्ष के दो प्रकार निर्दिष्ट हैं-केवलज्ञान प्रत्यक्ष और नो-केवल ज्ञान प्रत्यक्ष ।
नो-केवलज्ञान प्रत्यक्ष के दो प्रकार हैं--अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान । नंदी के अनुसार प्रत्यक्ष के दो प्रकार ये हैंइन्द्रिय प्रत्यक्ष और नो-इन्दिय प्रत्यक्ष । नो-इन्द्रिय प्रत्यक्ष के तीन प्रकार हैं-अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान।
स्थानांग के केवलज्ञान प्रत्यक्ष और नो-केवलज्ञान प्रत्यक्ष इन दोनों का समावेश नंदी के नो-इन्द्रिय प्रत्यक्ष में होता है। इन्द्रिय प्रत्यक्ष का अभ्युपगम जैनप्रमाण के क्षेत्र में उत्तरकालीन विकास है। उत्तरवर्ती जैन तर्कशास्त्रों में इसे महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
स्थानांग सूत्र संख्या-प्रधान होने के कारण संकलनात्मक है। इसलिए इसमें तत्त्व, आचार, क्षेत्र, काल आदि अनेक विषय निरूपित हैं। कहीं अतिरिक्त संख्या का दो में प्रकारांतर से निवेश किया गया है। उदाहरण के लिए आचार के प्रकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं। आचार के पांच प्रकार हैं-ज्ञानआचार, दर्शनआचार, चरित्र आचार, तपआचार और वीर्यआचार । प्रस्तुत स्थान में इनका निरूपण इस प्रकार है
नो-ज्ञानाचार के दो प्रकार—दर्शनाचार, नो-दर्शनाचार। नो-दर्शनाचार के दो प्रकार-चरित्राचार, नो-चरित्राचार । नो-चरित्राचार के दो प्रकार–तपआचार, वीर्यआचार।
विविध विषयों के अध्ययन की दृष्टि से यह स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
३. २२३६-२४२
१. ८६-१०६ २. नंदी ३-६
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