Book Title: Adhyatmik Poojan Vidhan Sangraha Author(s): Ravindra Publisher: Kanjiswami Smarak Trust DevlaliPage 15
________________ आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह जिन-भक्ति घड़ी जिनराज दर्शन की, हो आनंदमय हो मंगलमय, घड़ी यह सत्समागम की, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥१॥ अहो प्रभु भक्ति जिनपूजा, और स्वाध्याय तत्त्व-निर्णय, भेद-विज्ञान स्वानुभूति, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥२॥ असंयम भाव का त्यागन, सहज संयम का हो पालन, अनूपम शान्त जिन-मुद्रा, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥३॥ क्षमादिक धर्म स्वाश्रय से, सहज वर्ते सदा वर्ते, परम निर्ग्रन्थ मुनि जीवन, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥४॥ हो अविचल ध्यान आतम का, कर्म बंधन सहज छूटें, अचल ध्रुव सिद्ध पद प्रगटे, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।५।। जिन-भक्ति । शुभ काललब्धि जागी भगवन, मैं पास आपके आया हूँ। जागा है स्वपर विवेक अहो, निज महिमा लखिहर्षायाहूँ॥१॥ जिनवर गुणगान अहो निजगुण, चिन्तन का एक बहाना है। तुम साक्षी में प्रभुवर मुझको, निज शुद्धातम को ध्याना है ॥२॥ मैं नहीं अन्य कुछ तुम-सम प्रभु, चिन्मूरति श्रद्धा आई है। स्थिर स्वरूप आनन्दमयी, कृतकृत्य दृष्टि प्रगटाई है॥३॥ मैं कालातीत अखण्ड अनादि, अविनाशी ज्ञायक प्रभु हूँ। प्रतिसमय-समय में पूर्ण अहो, ज्ञाता-दृष्टा ज्ञायक ही हूँ॥४॥ आनन्द प्रवाह अजस्र बहे, मैं सहज स्वयं आनन्दमय हूँ। आनन्दमयी मेरा जीवन, मैं तो सदैव आनन्दमय हूँ॥५॥ ममज्ञान में ज्ञान हीभासित हो, फिर लोकालोकभले झलके। पर्यय निज में ही मग्न रहे, वस कालावली अनन्त बहे ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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