Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ १२६ सामाजिक एकता दोनों महाज्ञानी, समाजोद्धारक मनुष्यों की समानता और एकता पर बल देते थे । भगवान महावीर ने चाण्डाल हरिकेशी को गले लगाकर अस्पृश्य का, अन्त्यज का सप्रेम स्पर्श करके वैसा ही व्यवहार किया जैसा राम ने केवट के साथ किया था । महावीर ने दासी - क्रीतदासी के रूप में चन्दना का भोजन स्वीकार करके उसे वही आदर दिया जो राम ने भीलिनी शबरी को या कृष्ण ने विदुर को दिया था । पैगम्बर मोहम्मद ने तो स्पष्टत घोषणा की कि जैसा तुम खाओ वैसा अपने गुलाम या नौकर को भी खाने-पहनने को दो । उसकी सामर्थ्य से अधिक उससे काम न लो, अगर अधिक काम हो तो उसे सहारा दो, उसकी मदद करो। उन्होंने अमीर-गरीब, उच्च-निम्न, छोटेबड़े के भेद-भाव की दीवार गिरा दी और समाज के सब मनुष्यों को सभी वर्गों, सम्प्रदायों और फिरकों के लोगों को एक ही प्रेम-सूत्र में एकता की, समानता की भावना में बांध दिया। तभी तो डॉ० इकबाल ने कहा है अध्यात्म के परिपार्श्व में एक ही सफ में खड़े हो गये महमूदो अयाज । न कोई बन्दा रहा और न कोई बन्दा नवाज ॥ १ ॥ आज जो जातीय भेद-भाव और साम्प्रदायिकता की विषाक्त भावना समाज में देखी जाती है उससे देश का कभी हित नहीं होगा । जातीय एवं सामाजिक एकता से जाति का, देश का समुद्धार होगा, राष्ट्रीय एकता की जड़ें मजबूत होंगी । भगवान महावीर ने अपनी धर्म ध्वजा के नीचे विभिन्न मतावलम्बियों, सम्प्रदायों, वर्गों को लाकर एक ही मंच पर खड़ा कर दिया । सभी धर्मों के लोग उनके 'समवसरण' में एक स्थान पर बैठकर दिव्यवाणी से आनन्दाप्यातित होते थे- मानो उनके प्रताप ने सामाजिक विषमता को मूलोछिन्न कर दिया - तुलसी की पंक्ति में राम स्थान पर 'वीर' रखकर कहा जा सकता है - 'वीर प्रताप विषमता खोई ।' महावीर के समान मोहम्मद ने समाज में एकता और भाईचारे का सद्भावनापूर्ण वातावरण तैयार किया । उनके साथ - एक ही पंक्ति में खड़े होकर सभी तो नमाज पढ़ते थे, उन्होंने दास को दास नहीं, मनुष्य समझकर उसका आदर किया । उनके इस प्रभाव के कारण दास प्रथा धीरे-धीरे विलीन होने लगी और लोग दासों को आजाद करके उनके साथ अपनी लड़की का विवाह भी करने लगे । उन्होंने कर्म की महानता और पवित्रता का पाठ लोगों को सिखाया । वह स्वयं अपने कपड़ों में पेबंद लगाते, जूता ठीक करते, घर में झाडू लगाते, ऊंट की देखभाल करते । जब मस्जिद बनाई गई तो उन्होंने तरह काम किया। उन्होंने उजरत लेकर मक्का वालों की बकरियां चराई स्वयं मजदूरों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214