Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 190
________________ १७६ अध्यात्म के परिपार्श्व में या अज्ञान में रहता है वह विवेकहीन होता है और विवेकहीन मनुष्य उस अंधे व्यक्ति की भांति होता है जो दूसरे को भी गड्ढे में गिरा देता है-'अन्धे अंधा ठेलिया दोनों कूप पडत' (कबीर)। तुलसीदास ने दीपक को देहली पर रखने की बात कही है राम नाम मनिदीप धरु, जीह देहरी द्वार । तुलसी भीतर बाहेरहुं जौं चाहसि उजिआर ॥ (दोहावली ६) यदि मनुष्य भीतर और बाहर दोनों ओर प्रकाश (लौकिक और पारमार्थिक ज्ञान) चाहता है तो मुखरूपी दरवाजे की देहली पर रामनामरूपी (हवा के झोंके और तेल की कमी के कारण भी न बुझने वाला, नित्यप्रकाशमान) मणिदीप रख दो। यानी मनुष्य जिह्वा द्वारा निरन्तर रामनाम का जप करता रहे । आचार्य तुलसी का अणुव्रत आन्दोलन सच्चरित्र का निर्माण करने वाला है। उसके नियमों का अनुवर्तन करने पर मनुष्य लौकिक और पारमार्थिक लाभ अर्जित कर सकता है । उनका अणुव्रत आन्दोलन कई दशकों से चलाया जा रहा है और उसका लोगों पर देशव्यापी प्रभाव पड़ा है। इस आन्दोलन का सूत्रपात निम्न व्रतों/संकल्पों से हुआ जो आज भी न केवल अपनी प्रासंगिकता बनाए है बल्कि अपने प्रभाव को भी अक्षुण्ण रखे हुए है। ये ग्यारह सूत्री नियम/संकल्प वे हैं जिनका २ मार्च १९४९ में अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन करते समय राष्ट्रसंत आचार्यश्री तुलसी ने आचार-संहित के रूप में प्रतिपादन किया (१) निरपराध प्राणी की हत्या न करना । (२) किसी पर आक्रमण न करना, आक्रामक नीति का समर्थन न करना और विश्व-शान्ति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्नशील रहना। (३) हिंसात्मक उपद्रवों, तोहफोड़मूलक प्रवृत्तियों में भाग न लेना। (४) मानवीय एकता में विश्वास करते हुए जातीय रंगभेद की, ऊंच-नीच की भावना को न मानना और किसी को अस्पृश्य न समझना। (५) धार्मिक सहिष्णुता का भाव रखते हुए साम्प्रदायिक उत्तेजना न फैलाना। (६) व्यवहार तथा व्यवसाय में ईमानदार रहना। (७) निर्वाचन के समय अनैतिक आचरण न करना। (८) सामाजिक कुरीतियों, रुढ़ियों को प्रोत्साहन न देना, यानी दहेज, मृत्युभोज, बालविवाह आदि का विरोध करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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