Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 195
________________ इस्लाम की रोशनी में अणुव्रत आन्दोलन अणुव्रत नाम से अभिहित किया जाता है । अणुव्रत आन्दोलन मनुष्य में भौतिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक शक्ति का विकास सोपान है। इसमें मनुष्य, कुटुम्ब, समाज, राष्ट्र, संपूर्ण मानवजाति के अभ्युत्थान का संबल निहित है। आचार्यश्री तुलसी मनुष्य बनाने वाले मूर्तिकार हैं, कलाकार हैं। वे कठिनाइयों पर विजयध्वज फहराने वाले ज्योतिधर सैनिक हैं। अणुव्रत उनकी उद्योगशाला है। यहां मानव की रचना की जाती है, ऐसे मानव की जो मानवता से आपूर्ण हो, जिसमें आत्मोत्थान के साथ समाज, देश और राष्ट्र के उत्थान की बलवती लालसा हो । आचार्यश्री तुलसी आध्यात्मिक संत हैं पर चमत्कारी नहीं। वह महान मनीषी हैं पर अहंकारी नहीं। वे महान् चिन्तक हैं लेकिन चितित नहीं। वे क्रान्तिकारी हैं मगर राज्याधिकारी नहीं हैं। वे तेरापंथ के अधिष्ठाता हैं लेकिन स्वच्छंदवृत्ति के नहीं हैं। सर्वाधिकारी होते हुए भी वे निर्मम, कठोर नहीं, अनुशासित हैं। कमलवत् सदैव खिले रहते हैं। उन्हें अनुशासन तथा मर्यादा से प्रेम है। वे मर्यादापुरुष हैं । तेरापंथ की एक महान् उपलब्धि हैं । देश की अक्षय सम्पत्ति हैं। तेरापंथ का महान् आचार्य होकर भी उनमें साम्प्रदायिक संकीर्णता का लेशमात्र नहीं। उनका अणुव्रत अनाग्रही विचारधारा को लेकर चलता है । वह धर्म की शाश्वतता को लेकर चलता है । महावीर ने सम्प्रदायविहीन, वर्गविहीन, धर्म का प्रचार किया। युवाचार्य महाप्रज्ञ ने ठीक कहा है, 'संप्रदाय बुरा नहीं, बुरी है साम्प्रदायिकता, साम्प्रदायिक कट्टरता । साम्प्रदायिक कट्टरता अच्छी नहीं है।' महावीर ने जिस धर्म का प्रतिपादन किया उसमें साम्प्रदायिक कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं है। साम्प्रदायिक कट्टरता न हो इसका आदिस्वर महावीर वाणी में खोजा सकता है । उन्होंने जिन शाश्वत सत्यों का प्रतिपादन किया वे आज भी हमारे लिए अनुकरणीय बने हुए हैं। आज चारों ओर संकीर्ण साम्प्रदायिकता का बोलबाला है। सब अपने मताग्रह में आकंठ डूबे हैं, दूसरे के गुणों की ओर निहारने की फुरसत ही नहीं है । मतांधता या अहंकारदष्टि सभी को-हमारे शाश्वत मूल्यों को लील जाने के लिए तत्पर है। महावीर ने शाश्वत धर्म का मूलभाव सामने रखते हुए कहा--किसी प्राणी की हत्या मत करो-"सव्वे पाणा न हंतव्वा''। हम मनुष्य का खून करते नहीं डरते। किसी के घर, दुकान को आग लगाते नहीं सोचते कि यह हमारी ही तरह का किसी का घर है, दुकान है, कारखाना है। हिंसात्मक क्रूर भावना ने हाल ही में न जाने कितनी जाने लो हैं। कितने ही मासूम बच्चों का प्राणांत किया है, उन्हें चलती ट्रेन से फेंका गया है, कहीं गोली का १. अस्तित्व और अहिंसा-युवाचार्य महाप्रज्ञ, पृ० ११९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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