Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 202
________________ १८८ अध्यात्म के परिपार्श्व में जो जीवन-मूल्य हैं उन पर अमल करना होगा। __ मनुष्य को, समाज को उसकी वर्तमान जीवन-मूल्यों से विहीन स्थिति से उबारने के लिए आवश्यक है कि हम सच्चे दिल से, स्वेच्छा से मैदानेकारज़ार में आएं और स्वयं सुखी, मंगलमय जीवन का प्रसंग-प्रचार करें इसके लिए इन इन जीवन मूल्यों की गुलाबी धूप घर-आंगन में उतारें (१) भौतिकता और आध्यात्मिकता में संतुलन बनाना। (२) साम्प्रदायिक सद्भाव को, सहिष्णुता को विकसित करना । (३) मानव-एकता को, समानता को बढ़ावा देना । (४) प्रांत, भाषा के भेदभाव को समाप्त करना। (५) आतंक, भय, हिंसा, शोषण से समाज को मुक्त करना । (६) मन की, आत्मा की शुद्धता पर जोर देना। ईर्ष्या-द्वेष से ऊपर उठकर नैतिक मूल्यों का अनुसरण करना । (७) शाकाहार का स्वेच्छा से नियमित रूप में व्यवहार प्रचार-प्रसार करना । (८) संयम का जीवन जीना। (९) भोग-संग्रह की वृत्ति का परित्याग करना। (१०) सह-अस्तित्व की भावना का हर क्षेत्र में विकास करना । दस सूत्री जीवन मूल्यों से पूर्ण अगुव्रत आन्दोलन को यदि हम गहराई से देखें तो इसमें कोई समस्या नहीं, कोई धर्म नहीं। इन जीवन मूल्यों में अणुव्रत की भावनाओं को ही परिभाषित किया गया है। हम देखते हैं कि भारत में जगह-जगह हिंसाएं और हत्याएं होती रहती हैं। इन हिंसाओं को, हत्याओं को रोकने के लिए मनुष्य के विचारों में परिवर्तन लाना होगा, उसकी मानसिकता को, भावना को बदलना होगा, उसे संयमी और सहिष्ण बनाना होगा। आचार्यश्री तुलसी ने कहा है-"अहिंसा का सम्बन्ध किसी जीव के मारने या न मारने के साथ नहीं है । जीव मरे या जीवित रहे, मनुष्य की प्रवृत्ति असंयत है। वह तो निश्चय नय के अनुसार हिंसा की अनिवार्यता है । प्रमाद हिंसा है, असंयम हिंसा है, आग्रह हिंसा है, असहिष्णुता हिंसा है, और दुर्भावना हिंसा है। इसका अर्थ यह है कि "अभिव्यक्ति से पहले मनुष्य के विचारों में हिंसा उतरती है। इन्हीं विचारों को आज बदलने की अपेक्षा है। आज का अर्थतंत्र, सत्तातंत्र हिंसा पर चलता है, धर्म पर नहीं। धर्म ही अहिंसा है। हिंसा को हिंसा से मिटाया नहीं जा सकता है। हिंसा को मिटाने के लिए संयम का, सहिष्णुता का, सद्भावना का, नैतिकता का, आस्था और विवेक का पल्ला पकड़ना होगा । अणुव्रत अनुशास्ता का यह कहना सर्वथा उचित है कि "आज की सबसे बड़ी त्रासदी है चारित्रिक मूल्यों के प्रति अनास्था। एक पीढ़ी की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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