Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 207
________________ अणुव्रत आन्दोलन और विश्व-शान्ति १९३ पूजक हूं, इसलिए मैं दूसरे की माता की निन्दा हरगिज नहीं करूंगा।" अणुव्रत के माध्यम से आचार्य तुलसी सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना व्यक्त करते हैं तभी तो दक्षिण भारत की यात्रा करते समय आचार्य तुलसी के प्रवचन से प्रभावित होकर एक मुसलमान ने कहा कि आप तो कुआन' की बात ही कह रहे हैं। और जब वह हैदराबाद एक मंदिर में गये तो स्पष्ट घोषणा की-'भारतीय संस्कृति, इतिहास और कला के प्रतीक ये मंदिर मनुष्य को संस्कृति का मूल्य सिखाते हैं। मूर्तिपूजा में मेरा विश्वास नहीं, फिर भी मैं मंदिर का आलोचक नहीं हूं। निन्दात्मक आलोचना को मैं हिंसा मानता हूं। अपने विश्वास को बलपूर्वक किसी दूसरे पर थोपने का प्रयास करना भी हिंसा है। हिंसात्मक भावना से ऊपर उठकर मानवीय एकता को पुष्ट करना एक बड़ा काम है।" आचार्यप्रवर श्री तुलसी का अणुव्रत आन्दोलन मानवीय एकता की संपुष्टि का आन्दोलन है। यह मानवता की प्रतिष्ठा को सुरक्षित करने का आन्दोलन है । इस आन्दोलन के आधार पर मनुष्य को जीवन के ऐसे सूत्रों का ज्ञान कराया जा सकता है जिनका सार्वभौमिक महत्त्व है और जो आज के अशान्त, भय-विक्रान्त, आतंकवादग्रस्त, विनाशोन्मुख विश्व को शान्ति की डगर पर ला सकता है। सह-अस्तित्व की रोशनी दिखला सकता है। मानवीय एकता की भावधारा जन-मन में प्रवाहित करा सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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