Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 198
________________ आधुनिक मानसिकता अणुगत और जीवन-मूल्य आज युवा मानसिकता को एक नयी दिशा-दृष्टि देने की आवश्यकता है। युवावर्ग में हर काम करने की पूर्ण सामर्थ्य है। वह कुछ सीमा तक धर्मविमुख दिखाई पड़ता है। उसका उत्तरदायित्व उस पर जितना है उतना ही उसके अभिभावकों तथा संरक्षकों पर है । हम कहते हैं आज की युवापीढ़ी अपने बड़ों का समादार नहीं करती, उनकी मान-प्रतिष्ठा नहीं रखती। मैं कहता हूं मान-प्रतिष्ठा, आदर-सम्मान को छोड़िए, इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। लेकिन देखना यह है कि हमारा युवावर्ग कितना आज्ञाकारी है। मान से अधिक आज्ञापालन पर ध्यान दीजिए। यदि वह आज्ञाकारी नहीं तो खोट उसका नहीं, उसके माता-पिता का है, अभिभावकों का है । उन्होंने उसे कितना संस्कारी बनाया या वे स्वयं कितने संस्कारी हैं इस बात पर गौर कीजिए तो समस्या का सीधा-सा समाधान आपको स्वयं ही मिल जाएगा। अपने को टटोलकर देखिए । शायद अपने अन्दर ही खोट, दोष, कमी नजर आए। आचार्य तुलसीजी एक साधारण व्यक्तित्व के धनी हैं। उन्होंने अपने पौरुष से, सन्निष्ठा से वह कार्य किया है जो राजतन्त्र भी नहीं कर सकता, सरकार के बूते का भी नहीं ऐसा संव्यापक सुव्यवस्थित और प्रभावशाली कार्यक्रम चलाना । सरकार की योजनाएं तो कागज काले अधिक करती हैं। जनसाधारण तक उन योजनाओं का लाभ कम ही पहुंचता है। दिल्ली जैसे महानगर में हैजे के प्रकोप ने पूरी सरकार को हिलाकर रख दिया और स्वयं हमारे प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को उस महामारी ग्रस्त क्षेत्रों की दुर्दशा को अपनी आंखों से देखना पड़ा। कितनी पीड़ा हुई होगी उन्हें यह शायद कम लोग ही सोच सके होंगे। आचार्य तुलसीजी तेरापन्थ के प्रधान हैं और आचार्य भिक्षु के पश्चात् एक अद्भुत कर्मयोगी, लोकनायक तेरापन्थ को मिला है । उन्होंने सकल भारत की पदयात्रा करके नया कीर्तिमान स्थापित किया और एक नया आन्दोलन देश में चलाया जिसे सब 'अणुव्रत आन्दोलन' के नाम से जानते-पहचानते हैं। यह आन्दोलन विगत लगभ चालीस वर्षों से चल रहा है। देखने से तो ऐसा लगता है जैसे यह महावीर निर्दिष्ट अणुव्रत/महाव्रत से (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह) ही संबंधित है और एक धार्मिक तथा साम्प्रदायिक आन्दोलन हो, परन्तु ऐसी बात बिलकुल नहीं है । यह आन्दोलन न धार्मिक है और न साम्प्रदायिक है। यह धर्म और सम्प्रदाय की तंग, संकीर्ण भावनाओं को तोड़कर पूर्णरूप से मानवीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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