Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 142
________________ १२८ अध्यात्म के परिपार्श्व में अनुक्रम पर यदि सूक्ष्मता से विचार किया जाये तो ज्ञात होगा कि अपरिग्रह की प्राप्ति अहिंसा, सत्य, अस्तेय और ब्रह्मचर्य के अनुकूलाचरण करने से ही सम्भव हो सकती है, जो व्यक्ति हिंसा करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, कामवासना में लिप्त रहता है-कामासक्त है वह भला निष्परिग्रही कैसे बन सकता है ? वह तो परिग्रही है और परिग्रही को सद्गति मिल नहीं सकती, क्योंकि परिग्रही होने से आदमी लोभी, लालची होता है, और भगवान बचाये लालच से यह तो सभी अनर्थों का मूल है। परिग्रही व्यभिचारी होगा, भ्रष्टाचारी होगा, अन्यायी होगा, तस्कर और चोर होगा। महावीर का जीवन पूर्णतः अपरिग्रह पर ही अवलम्बित था। क्या था उसके पास ? वस्त्र, धन, मकान, गाड़ी, बर्तन, सेज। नहीं कुछ भी तो नहीं था। वह तो दिगम्बर थे-दिक् दिशाएं ही उनका अम्बर थीं। पृथ्वी ही उनकी सेज थी। उधर मोहम्मद साहब के जीवन को देखिए जो अरब के शासक होकर भी दरवेशों जैसा--साधु संन्यासियों जैसा जीवन व्यतीत करते थे । उनके पास विस्तर के नाम पर एक चटाई थी, बर्तनों में मिट्टी का एक लोटा, लकड़ी का एक प्याला था। कोई आलीशान बंगला नहीं-कच्चा मकान, कभी-कभी चूल्हे से रसोई से धुआं भी नहीं उठता था-अनेक बार उन्हें निराहार ही रहना पड़ा था लेकिन कौन जानता था कि आज मोहम्मद साहब के घर खाने को भी कुछ है या नहीं। एक बार खाने को कुछ पथ्य रखा था कि एक मुसाफिर ने/फकीर ने दरवाजे पर आकर सदा दी, कुछ मांगा और देखिये उनकी उदारशीलता-- अपरिग्रह कि वह पथ्य उठाकर स्मितवदन उस मुसाफिर को दे दिया-मजाल क्या माथे पर शिकन भी पड़ी हो। एक बार उनकी प्यारी लाड़ली बेटी फातिमा ने स्वर्णहार पहनने की इच्छा प्रकट की तो बेटी को यह समझाते हुए वर्जित किया कि ऐसे यानी सोने के आभूषण दोजखियों/नारकियों के लिए हैं। जब उनका अन्तिम समय आया तो जो कुछ दीनार (रुपया-पैसा) घर में पड़े हुए थे अपनी पत्नी आयशा से कहकर सबको अनाथों, दीनों, दरिद्रों में बंटवा दिया। कुरान में मालोदोलत एकत्रित करने से सख्ती से मना किया गया है-"जो लोग सोना-चांदी जमा करते जाते हैं और उसे अल्लाह के रास्ते में खर्च नहीं करते उनको दर्दनाक अजाब (नरक-पीड़ा) की खबर दे दो। जिस दिन उसे जहन्नुम (नर्क) की अग्नि में गर्म किया जायेगा फिर उससे उनके माथे, पहल और पीठ दागी जायेगी, यह वह है जो तुमने अपने लिये जमा किया था तो उसका मजा चखो, जो तुम जमा करते थे।” (कुरान ९, ३४-३५) । कुरान में बार-बार यह आदेश दिया गया है कि धन-सम्पत्ति जमा करके न रखो, अनाथों को, दरिद्रों को उनका हक, उनका भाग दो। इसलिए इस्लाम में एक प्रकार के दान-स्वेच्छा से दान देने को अनिवार्य माना गया है, वह है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214