Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 172
________________ अध्यात्मवादी संत की सामाजिक चेतना आचार्यश्री तुलसी एक अध्यात्मवादी संत हैं। वे तेरापंथ के प्रवर्तक हैं । उन्होंने अपने संघ को नई दिशा दी, नई चेतना प्रदान की, नूतन प्रेरणा का संचार किया, एक नई शक्ति का संबल दिया, एक नये अनुशासनमर्यादा की आभा प्रदान की। लेकिन उनकी दृष्टि में समाज भी रहता है, देश भी रहता है, विश्व को भी वे देखते हैं। मानवतावादी आचार्यश्री तुलसी अपने को पहले मानव मानते हैं, बाद में कुछ और। उन्होंने स्वयं कहा है" मैं सबसे पहले मनुष्य हूं, फिर धार्मिक हूं, फिर जैन हूं, और फिर तेरापंथ का आचार्य हूं ।” यहां आचार्यश्री के विचार ध्यान देने योग्य हैं । मनुष्य सर्वप्रथम मनुष्य है; उनका रहन-सहन, व्यवहार, विचार-दर्शन, कर्मक्षेत्र सब मनुष्य की परिधि में होता है । हम ही उसे बाद में नाना नाम-गुण देकर कुछ-सेकुछ बनाते हैं, संवारने की कला हमारे हाथ में है। संतों का धर्म मानवता का धर्म होता है, मानवता के हितार्थं वे सब कुछ करते हैं, अपने निजी लाभहानि की उन्हें रत्ती भर प्रवाह नहीं होती । वे प्रभु का प्रसाद भी स्वयं नहीं खाते, वह भी बांट कर खाते हैं । सबके सुख-दुःख का अनुभव जैसा संत करते हैं वैसा कोई नहीं करता । राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने एक स्थान पर लिखा है यह संसार है उस प्रभु का परिवार, सबसे रखना चाहिए, प्रेमपूर्ण व्यवहार । यही ईश्वरोपासना, यही धर्म का मर्म, एक दूसरे के लिए करें यहां हम कर्म । मनुष्य मात्र के अर्थ जो करते हैं उद्योग, सच्चे जन भगवान हैं बस वे ही लोग | आचार्यश्री तुलसी "भगवान के सच्चे जन" हैं। वह सभी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करते हैं । उन्होंने जो हजारों मील की पैदल यात्राएं कीं, डगरडगर, गांव-गांव, नगर-नगर धूप में, बरसात में, जाड़े में फिरते रहे उसका उद्देश्य मानवता का उद्धार था, लोगों को समता, एकता, सहनशीलता, प्रेम, सद्भाव का सन्देश दिया । समाज में फैले भ्रष्टाचार और अश्लीलता को देखकर उन्होंने लोगों को सन्मार्ग दर्शाया । सितम्बर १९६६ में बीदासर में आचार्य तुलसी के सान्निध्य में अश्लीलता विरोधी सम्मेलन हुआ जिसमें काका कालेलकर, जैनेन्द्र कुमार ने भाग लिया । उस समय आचार्यश्री तुलसी ने जनसभा को सम्बोधित करते हुए कहा था For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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