Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 158
________________ अध्यात्म के परिपार्श्व में महायुद्ध आण्विक युद्ध भड़क उठे। इससे बचने के लिए महावीर का सिद्धान्त "अनेकान्तबाद" हमें बहुत सहायता दे सकता है, त्राण दिला सकता है । आज विश्व में अशान्ति का प्रमुख कारण "परिग्रह" है। 'परिग्रहप्रवृत्ति' हमें अन्धा बन ती है। हम स्वार्थी बनकर केवल अपने लिए धन-संग्रह करते हैं, वस्तुओं की जमाखोरी करते हैं, काला धन बनाते हैं। इन सभी से वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं, वस्तुओं का अभाव हो जाता है । धनी लोग अधिक मूल्य देकर चीजें खरीद लेते हैं। संसार इसीलिए मुद्रास्र्फीति “इन्फलेशन" की समस्या से जूझ रहा है। गरीब देशों का अमीर देश शोषण कर रहे हैं। ये ही अशान्ति के कारण हैं। भगवान महावीर ने हजारों वर्ष पूर्व लोगों को "अपरिग्रह" का सिद्धान्त सिखाया ताकि वे किसी भी वस्तु का अनावश्यक रूप में संग्रह या परिग्रह न करें। परिग्रह धन का ही नहीं, मनुष्य का देखने में आता है, दाससा के रूप में, नारी का परिग्रह भी देखने में आता है भोग और दहेज के रूप में । नारियों को तो आज भी बेचा जाता है। दहेज कम लाने पर उसे जीवित जलाया जाता है । ऐसे मामले हम रोजाना समाचार पत्रों में पढ़ते भी हैं और देखते भी हैं। "रेप केस" भी इसीलिए होते हैं। किसी की अभाव में डालकर सुखी बनना क्या मानवता है ? किसी को बन्धुआ मजदूर बनाना क्या अमानुषिक कार्य नहीं है ? महावीर के युग में भी क्रीतदासप्रथा थी, "चंदनबाला" इसका ज्वलंत उदाहरण है, उसे सरे बाजार बोली बोलकर बेचा गया था। हमारी सरकार ने बन्धुआ मजदूरों को मुक्त कराकर एक महान मानवीय काम किया, परन्तु विश्व में परिग्रह की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, इसलिए हिंसा का वातावरण भी बढ़ता है। बड़े धनी-सम्पन्न देश छोटे देशों को अपने चंगुल में फंसाये हैं, उन्हें आजादी से सांस लेने, बात करने का अधिकार नहीं। शोषण की इस प्रवृत्ति को, परिग्रह की इस दुर्भावना को भगवान् महावीर की अहिंसा और अपरिग्रह से नष्ट किया जा सकता है और संसार में विश्व व्यापी शान्ति स्थापित की जा सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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