Book Title: Adhyatma ke Pariparshwa me
Author(s): Nizamuddin
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 169
________________ महावीर की चेतना-ज्योति १५५ पानी पिलाने में है, नंगे को कपड़ा देने में है, बीमार को औषधि देने में है। यहां परकल्याण की वाटिका चारों ओर पुष्पित दिखाई देती है, अपने लिए कुछ नहीं है । अहिंसा से चलकर सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की पांच मंजिलें तय करने के बाद हम हर प्रकार से लोकहित कर सकते हैं। ये मंजिलें ही समाज व लोककल्याण के लिये महावीर ने निर्दिष्ट की हैं । आज का सारा समाज स्वार्थ के ज्वालामुखी पर खड़ा है, सारा विश्व वैचारिक असहिष्णुता और विषमता के कगार पर खड़ा है। उसको विनाश से बचाने के लिए महावीर की अनेकान्त और अपरिग्रह की ज्योति काफी है। जैसे अमावस्या के सघन तिमिर को नष्ट करने के लिए दीपमालाएं जगमगा उठती हैं उसी प्रकार आज विश्व को हिंसा, संघर्ष, विषमता से बचाने के लिए महावीर की ज्ञान-ज्योति-'अनेकान्तवाद', 'अपरिग्रहवाद', के रूप में फैली हुई है । यह हमारा दुर्भाग्य है कि उधर हमारी दृष्टि नहीं जाती; क्योंकि वह स्वार्थ-बद्ध है, संकीर्ण है, धुन्धली है, ममत्व व रोग में फंसी हुई है । हमें रोग व ममत्व से ऊपर उठना पड़ेगा। युवाचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं-"परिवार के प्रति ममत्व का सघन रूप जैसे जाति या राष्ट्र के प्रति बरती जाने वाली अनैतिकता का नियमन नहीं करता, वैसे ही जाति या राष्ट्र के प्रति ममत्व अन्तर्राष्ट्रीय अनैतिकता का नियामक नहीं होता। मुझे लगता है कि राष्ट्रीय अनैतिकता की अपेक्षा अन्तर्राष्ट्रीय अनैतिकता कहीं अधिक है । जिन राष्ट्रों में व्यावहारिक सच्चाई है, प्रामाणिकता है, वे भी अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सत्यनिष्ठ एवं प्रामाणिक नहीं हैं।" (नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पूर्व कथित) सच्चा नैतिक जीवन राग, ममत्व से ऊपर है, यही वीतराग अवस्था है। महावीर कहते हैं "परिग्रह मूर्छा है", यह मूर्छा ही ममत्व है--"मूर्छा परिग्रह" (तत्वार्थ सूत्र, ७,१७)। आज जितना भी संघर्षाकुल वातावरण है उसके यीछे परिग्रह है, अधिकाधिक संग्रह की प्रवृत्ति है । धनार्जन करना बुरा नहीं परन्तु लोकहितार्थ हो, देशहितार्थ हो, 'स्वहितार्थ' तक सीमित न रहे। श्री श्रेयांसप्रसादजी को 'समाज रत्न" की उपाधि से पश्चिमी चैम्बर ऑफ कामर्स ने जो विभूषित किया उसके पीछे सर्वाहित की, लोककल्याण की, देशकल्याण की भावना सन्निहित है, ठीक वैसे ही जैसे "भारत रत्न" के पीछे भारत की, देश की अधिकतम सेवा की भावना छिपी है । गरीबी कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका हल न हो। हल तो हमारे पास है वह है महावीर का अपरिग्रह । अपरिग्रहवाद सबके हित को लेकर चलता है इसमें आर्थिक या । धन का पहलू तो है ही यह अन्य दूसरी तरह के परिग्रहों को-मत या धर्म का परिग्रह, धर्मग्रंथ या मन्दिरों का परिग्रह, सभी को समेटकर चलने वाला है। महावीर कहते हैं कि पक्षपात या वैर किसी से मत करो, सबकी आत्मा समान है, सबको आत्मविकास का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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