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जैन धर्म की प्रासंगिकता खोजना होगा। आज उनकी उपादेयता महावीर के युग से काफी अधिक है।
हमारा देश जैसा बहधर्मी है, वैसा बहुभाषी भी है। यहां संकीर्ण विचारधारा के कारण लोग भाषा को भी धर्म का चश्मा चढ़ा कर देखते हैं। मुसलमानों की भाषा उर्दू बताई जाती है, सरकार भी इस भावना का शोषण करती है। कहीं उर्दू अकादमी बनाकर, कहीं गालिब अकादमी खोलकर, कहीं उर्दू-अध्यापकों की भरती का नारा लगाकर सरकार मुसलमानों की भावना से उचित-अनुचित लाभ उठा रही है । हिन्दी को अहिन्दी-भाषियों पर थोपने का बे-सिर-पैर का नारा लगाकर दक्षिण प्रदेश के लोगों को भड़काया जाता है। कश्मीर भी एक अहिन्दी भाषी प्रान्त है। यहां की बहुसंख्यक आबादी मुसलमानों की है, उनकी मातृभाषा कश्मीरी है, जिसमें संस्कृत के ७० प्रतिशत शब्द व्यवहृत हैं। यहां के मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने आठवीं कक्षा तक सरकारी स्कूलों में हिन्दी अनिवार्य घोषित की। और "ओकाफ ट्रस्ट" की ओर से जो विद्यालय चलाये जाते हैं उनमें भी शेख साहब ने हिन्दी अनिवार्य विषय घोषित किया। 'ओकाफ ट्रस्ट' के अध्यक्ष शेख साहब हैं। यहां भाषा की समस्या को शेख साहब ने धर्म से नहीं जुड़ने दिया। दूसरे प्रांतों में अवश्य प्रान्तीयता या धर्म की संकीर्णता को लेकर भाषा का हौआ खड़ा किया जाता रहा है। जब जैनधर्म पर दृष्टि डालते हैं, तब देखते हैं कि उसका भाषा के प्रति कोई दुराग्रह नहीं रहा, कोई संकीर्ण विचार नहीं रहा। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, अंग्रेजी, गुजराती अनेक भाषाओं में उसका साहित्य है। यहां जैनधर्म की प्रासंगिकता स्पष्ट है। मतभेदों को सामंजस्यपूर्ण उदारता और शालीनता से दूर किया जा सकता है। भाषा को अपने युग की विचारधारा को व्यक्त करने का माध्यम मानकर ही स्वीकार करना चाहिए। जैनधर्म में उसी भाषा को स्वीकार किया जाता रहा जो उस युग में प्रचलित थी। भाषाभेद को मिटाने के लिए जैनधर्म की नीति अपनानी होगी।
अन्त में, एक बात का और संकेत करना आवश्यक है, वर्तमान युग स्वतन्त्रता का युग है । समय के साथ स्वतन्त्रता के प्रति मोह बढ़ता जाता है, जो स्वाभाविक है। भगवान महावीर भी स्वतन्त्रता की खोज करने के लिए घर-परिवार-समाज से दूर गये—यहां तक कि वे शरीर से भी विमुख हो गये । आज चारों ओर स्वतन्त्रता का आलोक फैलता जा रहा है, ऐसे में भला किसी को कैसे परतन्त्र बनाया जा सकता है। व्यक्ति-स्वातन्त्र्य की भावना जोर पकड़ती जा रही है। कोई यह सहन नहीं करता कि उसकी व्यक्तिगत, समाजगत स्वतंत्रता में कोई बाधा डाले । लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को विशेष मान्यता प्राप्त है। फिर लोगों को बन्धक या दास बनाकर नहीं रखा जा सकता। नारी को भी समान रूप में स्वतंत्रता का अधिकार है, उसे धर्म और समाज में समानता, स्वतंत्रता देनी है, दी जा रही है। इसमें भी हमें
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