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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
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व्यवहार सम्यकचारित्र और निश्चय सरागसम्यकचारित्रका स्वरूपपंचाचारादिरूपं दृगवगमयुतं सच्चरित्रं च भाक्तं द्रव्यानुष्ठानहेतुस्तदनुगतमहारागभावः कथंचित् । भेदज्ञानानुभावादुपशमितकषायप्रकर्षस्वभावो भावो जीवस्य सः स्यात्परमनयगतः स्याचरित्रं सरागम्॥१३॥
अर्थ-जो पंच श्राचारादिस्वरूप है-दर्शन, ज्ञान, चारित्र तप और वीर्य इन पांच आचार तथा आदिपदसे उत्तम-क्षमादि दश-धर्म और षडावश्यकादि क्रियास्वरूप है-तथा सम्यग्दर्शन
और सम्यग्ज्ञानसे युक्त है वह व्यवहार सम्यकचारित्र है। इस व्यवहार सम्यकचारित्रमें द्रव्य-क्रियाओंके करने में कुछ अनुकूल स्थूल राग परिणाम हुआ करता है इसी लिये यह व्यवहार चारित्र कहा जाता है। भेदज्ञानके प्रभावसे जिसमें कषायोंका प्रकर्षस्वभाव शान्त हो जाता है वह जीवका भाव निश्चयनयसे सराग सम्यक् चारित्र है।
भावार्थ-पंच महाव्रतादिरूप तेरह प्रकारके चारित्रका अनुठान करना व्यवहारचारित्र है और स्वस्वरूपमात्र में प्रवृत्ति करना निश्वयचारित्र है। इस तरह व्यवहार और निश्चयके भेदसे चारित्र दो प्रकारका है, जिसका खुलासा इस प्रकार है :
सम्यग्ज्ञानं कार्य सम्यक्त्वं कारणं वदन्ति जिनाः । ज्ञानाराधनमिष्टं सम्यक्त्वानन्तरं तस्मात् ॥ ३३ ॥ कारण-कार्यविधानं समकालं जायमानयोरपि हि । दीप-प्रकाशयोरिव सम्यक्त्व-ज्ञानयोः सुघटम् ॥ ३४ ॥
__-पुरुषार्थसिद्धय पाये, श्रीअमृतचन्द्रः ।
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