Book Title: Adhyatma Kamal Marttand
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 183
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड ६५ सर्वाङ्ग प्रति सूक्ष्मकालमनिशं तुल्यप्रदेशस्थिताः स्याद्रव्यास्रव एष एकसमये बन्धश्चतुर्धाऽन्वयः ॥ ६॥ ___ अर्थ-कार्मणवर्गणाएँ-एक तरहकी पुद्गलवर्गणाएँ, जिनमें कर्मरूप होकर जीवके साथ बंधनेकी शक्ति विद्यमान होती है और जो समस्त लोकमें व्याप्त हैं-जीवके रागादिभावोंके द्वारा ज्ञानावरण आदि अष्टकर्मरूप परिणमनको प्राप्त होती हैंआत्माके राग, द्वेष आदि भावोंसे खिंचकर ज्ञानावरण आदिकर्मोके रूपमें आत्माके साथ बंधको प्राप्त होती हैं। तथा सर्वाङ्गोंसम्पूर्ण शरीरप्रदेशोंसे आत्मामें प्रतिसमय आती रहती हैं और आत्माके समस्त प्रदेशों में स्थित हैं । सर्वज्ञदेवके प्रत्यक्षज्ञानसे और आगमसे सिद्ध हैं। इन कार्मणवर्गणाओंका आत्मामें आना द्रव्यास्रव और आत्मप्रदेशोंके साथ कर्मप्रदेशोंका अनुप्रवेशएकमेक होजाना द्रव्यबंध है और वह द्रव्यबंध चार प्रकारका भावार्थ-पुद्गलद्रव्यकी तेईस वर्गणाओंमें आहारवर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवगणा, तेजसवर्गणा और कार्मणवर्गणा ये पाँच वर्गणाये ही ऐसी हैं जिनका जीवके साथ बंध होता है। इनमें कार्मणवर्गणाके स्कन्ध रागादिभावोंके द्वारा ज्ञानावरणादि आट कर्मरूप परिणमते हैं और जीवके साथ बंधको प्राप्त होते हैं। तथा समयपर अपना फल देते हैं । अथवा तपश्चर्या आदिके द्वारा किन्हीं जीवोंके वे कर्मफल देने के पहिले ही झड़ जाते हैं। इन कार्मणवर्गणाओंका कर्भरूप परिणत होकर आत्मा में आना द्रव्यास्रव है और उनका आत्माके प्रदेशोंके साथ परस्पर अनुप्रवेशात्मक सम्बन्ध होना द्रव्यबन्ध है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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