Book Title: Adhyatma Kamal Marttand
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 196
________________ परिशिष्ट [पृष्ठ 34, पंक्ति 10 के आगेका क्रम-प्राप्त निम्न पद्य और उसका अनुवाद छपनेसे रह गया है। अतः उसे यहाँ दिया जाता है।] व्ययका स्वरूपसति कारणे यथास्वं द्रव्यावस्थान्तरे हि सति नियमात् / पूर्वावस्थाविगमो विगमश्वेतीह लक्षितो न सतः // 18 // अर्थ-यथायोग्य ( बहिरङ्ग और अन्तरङ्ग ) कारणोंके होने और द्रव्यकी उत्तर अवस्थाके उत्पाद होनेपर नियमसे पूर्व अवस्थाका नाश होना विगम-अर्थात् व्यय कहा गया है / सत् (द्रव्य) का व्यय नहीं होता। भावार्थ-जिस प्रकार तुरी, बेमादि पटकारणोंके होनेपर और पटके उत्पन्न होनेपर जो तन्तुरूप अवस्थाका विनाश होता है वह उसका विगम कहलाता है उसी प्रकार उपादान और निमित्त कारणोंके मिलनेपर द्रव्यकी उत्तर अवस्थाके उत्पादपूर्वक पूर्व अवस्थाका त्याग होना विगम है ! शुद्धि-पत्र पृष्ट पंक्ति अशुद्ध शुद्ध 66 क्षायायशमिक क्षायोपशमिक नभान्तर्गतं पुण्यं 8 Bष्ट x 28 11 त्या winx K यात्मक नाभाव तादात्म्य 61 तादाम्य सूक्ष Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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