Book Title: Adhyatma Kamal Marttand Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 1
________________ प्रकाशकीय वक्तव्य कितने ही अर्सेसे इस ग्रन्थरत्नको अनुवादके साथ प्रकाशित करनेका विचार चल रहा था, परन्तु अपने विद्वानोंको संस्थाके दूसरे कामोंसे यथेष्ट अबकाश न मिलसकनेके कारण अनुवाद-कार्य बराबर टलता रहा । आखिर दो विद्वानोंने दृढ़ताके साथ इस कार्यको अपने हाथों में लिया और उसके फलस्वरूप प्रस्तुत अनुवाद तैयार हुआ, जो तैयार होनेके बाद छपाई आदि की योग्य व्यवस्था न बन सकने के कारण कुछ समय तक यों ही पड़ा रहा । अन्तको श्रीमान् ला० जुगलकिशोरजी जैन कागजी(मालिक फर्म धूमीमल धर्मदास) चावड़ी बाजार देहलीने संस्थाके पहलेसे आर्डरप्राप्त रुके पड़े हुए प्रकाशन-कार्योंको शीघ्र प्रकाशित करदेनेका आश्वासन दिया और उसके लिये इतनी तत्परता तथा उदारतासे काम लिया कि संस्थाके एक दो विद्वानोंको बराबर समयपर प्रूफरीडिंग आदि कार्योंको सम्पन्न करते हुए स्वकीय देखरेखमें ग्रन्थोंको छपा लेनेके लिये बड़े आदर-सत्कार तथा कौटुम्बिक प्रेमके साथ अपने पास रक्खा और अभी तक रख रहे हैं। साथ ही उनके लिये प्रेस-श्रादिकी सब कुछ सुविधा तथा योग्य व्यवस्था करदी। उसीके फलस्वरूप अाज यह ग्रन्थ उन्हीं के प्रेसमें मुद्रित होकर पाठकोंके हाथोंमें जा रहा है, कुछ ग्रन्थ इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं और कुछ प्रकाशित होनेवाले हैं। अतः इन सब ग्रन्थोंके सुन्दर प्रकाशनका प्रधान श्रेय उक्त सौजन्यमूर्ति उदारहृदय ला• जुगलकिशोरजी को प्राप्त है, और इसके लिये उन्हें जितना भी धन्यवाद दिया जाय वह सब थोड़ा हैं । संस्था उनके इस धार्मिक सहयोग तथा उपकारके लिये सदा उनकी ऋणी रहेगी। ___यह ग्रन्थ आश्विन मासके अन्तमें ही छपकर तय्यार होगया था, जैसा कि इसके टाइटिल पेजसे प्रकट है, जो उसी समय छप गया था। परन्तु प्रस्तावना उस वक्त तक तय्यार नहीं हो सकी थी। कार्तिकमें कलकत्ताके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 196