Book Title: Adhyatma Kamal Marttand
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 193
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड पुण्यजीव और पापजीवोंका कथनशुभभावयुक्ता ये जीवाः पुण्यं भवन्त्यभेदात्ते। संक्त शैः पापं तद्रव्यं द्वितीयं च पौद्गलिकम् ॥१८॥ अर्थ-जो जीव शुभ परिणामवाले हैं वे अभेदविवक्षासे पुण्य हैं-पुण्य-जीच हैं और जो संक्लेशसे युक्त हैं चे पाप हैंपाप-जीव हैं; किन्तु पुण्य और पाप ये दोनों पुद्गलकर्म हैं। ___ भावार्थ-जिन कर्मोके उदयसे जीवोंको सुखदायी इष्ट सामग्री प्राप्त हो उन कर्मोको 'पुण्य' कर्म कहते हैं और जिन कर्मों के उदयसे दुःखदायी अनिष्ट सामग्री प्राप्त हो उन कर्मोको "पाप' कर्म कहते हैं। इन दोनों ( पुण्य और परप ) का जीवके साथ सम्बन्ध होनेसे जीव भी अभेददृष्टिसे दो तरहके कहे गये हैं- (१) पुण्यजीव और (२) पापजीच । जिन जीवोंके 'पुण्यकर्मों का सम्बन्ध है वे पुण्यजीव हैं और जिनके 'पाप-कर्मों का सम्बन्ध है वे पापजीव हैं। शास्त्रसमाप्ति और शास्त्राध्यनका फलये जीवाः परमात्मवोधपटवः शास्त्रं त्विदं निर्मले नानाऽध्यात्म-पयोज-भानु कथितं द्रव्यादिलिङ्ग स्फुटम् । जानन्ति प्रमितेश्च शब्दवलतो यो वाऽर्थतः श्रद्धया ते सद्दृष्टियुता भवन्ति नियमात्सम्बान्तमोहाः स्वतः ॥१६॥ अर्थ-जो भव्य जीव परमात्माके बोध करने में निपुण होते हुए इस 'अध्यात्मकमलमार्तण्ड' नामक निर्मल अध्यात्म-ग्रन्थका, जिसमें द्रव्यादि पदार्थोका विशद वर्णन किया गया है, प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे तथा शब्द और अर्थके साथ श्रद्धापूर्वक जानते हैं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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