Book Title: Adhyatma Kamal Marttand
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 157
________________ ६६ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड हलका, भारी, कोमल, कठोर ये चार स्पर्श परमाणुओंमें नहीं होते, -वे स्कन्धोंमें ही होते हैं। परमाणु अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे स्वयं ही आदि है, स्वयं ही मध्य है और स्वयं ही अन्तरूप है तथा इन्द्रियोंसे अग्राह्य है और अविभागी है-उसका कोई दूसरा भाग नहीं होसकताए । कारणरूप है, अन्त्य है, सूक्ष्म है और नित्य है। इन परमाणुगत उपर्युक्त रूपादिगुणोंमें रहनेवाली अनन्तशक्तियोंमें धर्मसंज्ञक शुद्धपर्याये होती हैं। स्कन्धोंके रूपादिकोंमें पौद्गलिकत्वकी सिद्धि और उनकी अशुद्ध पर्याय स्कन्धेषु द्वयणुकादिषु प्रगतसंशुद्धत्वभावेषु च ये धर्माः किल रूपगंधरससंस्पर्शाश्च तत्तन्मयाः । * (क) 'एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसद्द। खंधंतरिदं दव्वं परमाणु तं वियाणेहि ॥'-पंचास्ति० ८१ (ख) 'एकरसवर्णगंधोऽणुः निरवयवत्वात् ॥१२॥ एकरसः एकवर्णः एकगन्धश्च परमाणुर्वेदितव्यः । कुतः १ निरवयवत्वात् । साचयवानां हि मातुलिङ्गादीनां अनेकरसत्वं दृश्यते अनेकवर्णत्वं च मयूरादीनां, अनेकगन्धत्वं चानुलेपनादीनां । निरवयवश्वाणुरत एकरसवर्णगंधः । द्विस्पर्शो विरोधाभावात् । को पुनः द्वौ स्पर्शी ? शीतोष्णस्पर्शयोरन्यतः, स्निग्धरूक्षयोरन्यतरश्च । एकप्रदेशत्वात् विरोधिनोः युगपदनवस्थानं । गुरुलघुमृदुकठिनस्पर्शानां परमाणुष्वभावः स्कन्धविषयत्वात् ।'–राजवार्तिक पृ० २३६ + 'अत्तादि अत्तमझ अतं णेव इंदिये गेझं। जं दव्वं अविभागी तं परमाणु वियाणेहि ॥' उद्धृत राजवा-पृ.२३५ * 'कारणमेव तदन्त्यः सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः। एकरसगंधवर्णो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥' उद्धृत राजवा० पृ०२३६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org


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