Book Title: Adhyatma Kamal Marttand
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 155
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड पुद्गलद्रव्यके बीस गुण और शुद्ध गुण-पर्यायका कथन-- शुद्धेऽणौ खलु रूपगन्धरससंस्पर्शाश्च ये निश्चितास्तेषां विंशतिधा भिदो हि हरितात्पीतो यथाम्रादिवत् । तभेदात्परिणामलक्षणबलाद्मेदान्तरे सत्यतो धर्माणां परिणाम एष गुणपर्यायः स शुद्धः किल ॥२५॥ अर्थ-पुद्गलद्रव्यके शद्ध परमाणुमें, नियमसे जो रूप, गंध, रस और स्पर्श ये चार गुण होते हैं, उनके बीस भेद हैं। रूप पांच (कृष्ण, पीत, नील, रक्त और श्वेत), रस पांच (तिक्त, आम्ल, कषाय, कटु और मधुर), गन्ध दो ( सुगन्ध और दुर्गन्ध ) स्पर्श आठ (मृदु, कठिन, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष) इस प्रकार ये पुद्गलके कुल बीस गुण हैं । हरेसे पीले हुये आम आदिकी तरह इन बीस गुणोंका-परिणामलक्षण एक भेदसे ( अवस्थासे ) भेदान्तर-अवस्थान्तर--दूसरी अवस्थाके होनेपर जो यह भेदसे भेदान्तरलक्षण परिणमन होता है वह निश्चयसे शुद्ध गुगणपर्यायरूप है-अर्थात् वह शद्ध गुणपर्याय संज्ञावाला है। - भावाथ-पुद्गलके दो भेद हैं-(१) परमाणु और (२) स्कन्ध । उक्त रूपादि चारों गुण इन दोनों ही प्रकार के पुद्गलोंमें हैं। रूपादि चारगुणोंके अवान्तर बीस भेदों में से परमाणुमें केवल पांच गुण (एकरूप, एक रस, एक गन्ध और दो स्पर्श) होते हैं और स्कन्धमें यथा सम्भव सभा गुण होते हैं । यह विशेष है कि हर एक स्कन्धमें वे न्यूनाधिकरूपसे ही पाये जाते हैं । हरे रूपसे पीलारूप होना, मधुर रससे अन्य प्रकारका रस होना आदि उक्त बीस गुणोंकी गुणपर्यायें हैं । यह गुणपर्याय शुद्ध परमाणुमें तो शुद्ध ही होती हैं और स्कन्धमें अशुद्ध होती हैं। * 'श्रणवः स्कन्धाश्च'–तत्त्वार्थसूत्र ५-२५ । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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