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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड
२७ अर्थ-जो अन्वयी हैं-द्रव्यके साथ सदा रहनेवाले हैं, नित्य हैं-अविनाशी हैं, निर्गुण हैं-अवयवरूप हैं और अनंत अविभाग-प्रतिच्छेद-स्वरूप हैं, द्रव्यके आश्रय हैं-जो द्रव्यमें ही पाये जाते हैं, और अपनी शक्तियोंसे सदा उत्पाद-व्यय-विशष्ट हैं, वे गुण कहलाते हैं। भावार्थ-जो सदैव द्रब्यके आश्रय रहते हैं और निर्गुण होते हैं वे गुण कहलाते हैं । गुण अन्वयी होते हैं, द्रव्यके साथ सदा रहते हैं और उससे अलग नहीं होते, कभी नाश भी नहीं होते, वे सदा अपनी शक्तियोंसे उत्पाद, व्यय करते हुए भी ध्रौव्यरूपसे रहते हैं, अथवा एक गुणका उस ही गुणकी अनन्त अवस्थाओंमें अन्वय पाया जाता है इस कारण गुणोंको अन्वयी कहते हैं। यद्यपि एक द्रव्यमें अनेक गुण हैं इसलिये नाना गुणकी अपेक्षा गुण व्यतिरेकी भी हैं। परन्तु एक गुण अपनी अनन्त अवस्थाओंकी अपेक्षासे अन्वयी ही है। वे गुण दो प्रकार के हैं :-एक सामान्यगुण और दूसरे विशेषगुण इन दोनों ही प्रकारक गुणोंका स्वरूप ग्रन्थकार आगे बतलाते हैं।
सामान्यगुणका स्वरूपसर्वेष्वविशेषेण हि ये द्रव्येषु च गुणाः प्रवर्तन्ते । ते सामान्यगुणा इह यथा सदादि प्रमाणतः सिद्धम् ॥७॥
अर्थ-जो गुण समस्त द्रव्योंमें समानरूपसे रहते हैं वे यहाँ पर सामान्यगुण कहे गए हैं। जैसे प्रत्यक्षादि-प्रमाणसे सिद्ध अस्तित्वादि गुण।
जैन-सिद्धान्तदर्पण पृ० ६७।
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