Book Title: Adhar Abhishek Vidhi Author(s): Jinendrasuri, Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 5
________________ ॥३॥ प्लक्षाश्वत्थोदशोक-श्रामच्छल्यादि-कल्कसंमिश्रम् । बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥१॥ पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरीषोम्बरकः पुनः। वटादिकं महाछल्ली, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ “ॐ हाँ ही परमअर्हते पिप्पल्यादिमहाछल्लैः स्नापयामीति स्वाहा" ॥ इति तृतीयस्नात्रम् ।। चोथु (मंगलमृतिका) स्नात्र आठ जातिनी माटीनुचूर्ण करी कलश भरवाना पाणीमा नाखी चार कलश भरवा 'नमोऽहत्' कहीपरोपकारकारी च, प्रवरः परमोज्वलः। भावना-भव्यसंयुक्तै-मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ॥१॥ पर्वतसरो-नदी-संगमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः। उदय॑ जैनबिम्ब, स्नापयाम्यधिवासना-समये ॥२॥ "ॐ हाँ ही परम अहंते नदीनगतीर्थादिमृच्चूर्णैः स्नापयामीति स्वाहा"। ॥ इति चतुर्थस्नात्रम् ॥ पांचमु (सदोषधि) स्नात्र औषधिओनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमा नाखवु'. 'नमोऽहत्' कहीसहदेवी शतमूली, शतावरी शंखपुष्पिका। कुमारी लक्ष्मणा चैव. स्नापयामि जिनेश्वरम ॥३॥ For Personal Private Use OnlyPage Navigation
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