Book Title: Adhar Abhishek Vidhi
Author(s): Jinendrasuri, 
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 13
________________ ॥११॥ KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX रभ्यं घनसार-पङ्कज-रजो-निःप्रीणितैः पुष्करः, शीतैः शीतकरावदात-रुचिभिः काश्मीर-सन्मिश्रितैः। श्रीखण्ड-प्रसवाचलैश्च मधुरैः नित्यं लभेष्टैर्वरैः, सौरभ्योदक-संख्य-सार्व-चरण-दन्द यजे भावतः॥१॥ ___ॐ हाँ ही इहैहौं हः परम अर्हते केशरचन्दनाभ्यां स्नापयामीति स्वाहा" ॥ इति अष्टादशस्नात्रम् ॥ ए मंत्र बोली स्नात्र करी, तिलक आदिकथी पूजन करी, पुष्पांजलि लइ नीचेनो श्लोक बोलवोनानासुगन्ध-पुष्पौधरञ्जिता चश्चरीक-कृतनादा। धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाअलि-विम्बे ॥१॥ __पछी “ॐ ह्रां ह्रीं ह. पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा" ए मंत बोली पुष्पांजलिथी पूजन करवू. .. पछी अष्टप्रकारी पूजा करी आरती, मंगलदीवो, शांतिकलश करवो. छल्ले अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं करवु ॥ इति अढार अभिषेक विधि ॥ CEOSXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX ॥११॥ Jain Education international For Personal Private Only

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