Book Title: Adhar Abhishek Vidhi Author(s): Jinendrasuri, Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 7
________________ ५॥ EXXXXXXXXXXXXXXXXX श्राठमु (सर्वोषधि) स्नात्र प्रियंगु वि० ३३ औषधिोनु चूर्ण करी कलश भरवाना जलमा नाखवु'. 'नमोऽहत्' कहीप्रियगुवच्छ-कंकेली, रसालादि-तरूद्भवैः । पल्लवैः पत्रभल्लात, एलची-तजसत्फलैः ॥ १॥ विष्णुकान्ता हिमवाल-लवङ्गादिभि-रष्टभिः । मूलाष्टकस्तथाद्रव्यैः, सदोषधि-विमिश्रितैः॥ २॥ . सुगन्धद्रव्य-सन्दोहा,-मोदमत्तालि-संकुलैः। विदधेऽर्हन्महास्नात्रं, शुभ-सन्तति-सूचकम् ॥ ३॥ मेदाद्यौषधि-भेदोऽपरोऽष्टकवर्ग-सुमन्त्रपरिपूतः। निपतबिम्बस्योपरि, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥४॥ "ॐ हाँ हाँ परम अर्हते पियङ्ग्यादिभिः सर्वोषधैः स्नापयामीति" ॥ इति अष्टमस्नात्रम् ।। त्यारपछी गुरु उभा थइ-परमेष्ठिमुद्रा, गरुडमुदा अने मुक्ताशुक्तिमुद्रा ए त्रण मुद्राथी जिनेश्वरनुं आह्वान करे. आह्वान करवानो मंत्र-“ॐ नमोऽहत्परमेश्वराय, त्रैलोक्यगताय अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय, देवेन्द्रमहिताय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा" KXXXXXXXXXXXXXXXX ॥५ ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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