Book Title: Adhar Abhishek Vidhi Author(s): Jinendrasuri, Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ अढार अभिषेक विधिः। ॥६॥ XXXXRRRRRRRXXXXXXXXXXXXXX नवमु (पंचगव्य अथवा पंचामृत) स्नात्र पंचामृतनो कलश भरी 'नमोऽहत्' कही. जिनबिम्बोपरि निपतत् , घृतदधि-दुग्धादि-द्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदक-सन्मित्रं, पंचगव्यं हरतु दुरितानि ॥ १ ॥ वरपुष्प-चन्दनैश्च, मधुरैः कृतनिःस्वनैः । दधिदुग्ध-घृतमित्रैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥ २ ॥ "ॐ हाँ ह्रीं परमअर्हते पञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा" ॥ इति नवमस्नात्रम् ॥ __दशमु (सुगंधौषधि) स्नात्र - अंबर वि. सुगंधी वस्तुओनुचूर्ण करी कलश भरवाना जलमा नाखg. 'नमोऽहंत' कहीसर्वविघ्न-प्रशमनं, जिनस्नात्र-समुद्भवम् । वन्दे सम्पूर्णपुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेजिनम् ॥ १॥ सकलौषधि-संयुक्त्या, सुग-न्ध्या घर्षितं सुगतिहेतोः। स्नपयामि जैनबिम्ब, मन्त्रित-तन्नीरनिवहेन॥२॥ "ॐ हाँ ही परम अर्हते अम्बरउशीरादिसुगन्धद्रव्यैः स्नापयामीति स्वाहा" ॥इति दशमस्नात्रम् ॥ EKXXXXXXXXXXXXXXX ॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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