Book Title: Acharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan Author(s): Kusumpragya Shramani Publisher: Jain Vishva BharatiPage 14
________________ ২নংfীলন কা নিঃনি आचार्य तुलसी एक तपस्वी और साधक पुरुष हैं। इस शताब्दी में जो बहुत बड़े-बड़े साधक और आचार्य हुए हैं, आचार्य तुलसी का नाम उनमें लिया जाएगा। आचार्य तुलसी के अनेक रूप मैंने देखे हैं। वे एक ओर जहां श्रमणपरंपरा में जैन धर्म का प्रचार और प्रसार करते हैं, वहीं दूसरी ओर अपने प्रवचनों से जीवन को सार्थक और संयमित बनाने का उनका प्रयास रहता है । उनके व्यक्तित्व का तीसरा आकर्षण है-सृजनशीलता । वे एक सृजनशील लेखक हैं । उनकी कहानयिां, लेख, कविताएं, पत्र और आत्मकथ्य इत्यादि में इसकी पहचान सहज ही की जा सकती है। आचार्यजी प्रतिदिन डायरी लिखते हैं। 'डायरी-लेखन' विश्व साहित्य में एक महान् उपादेय रचना समझी जाती है, क्योंकि दिन भर जो कुछ बीतता है, उसे ईमानदारी से उसी दिन लिख देना, साहित्य की किसी विधा में आता हो या न आता हो, अपने आसपास के परिवेश और परिचय को पहचानने के लिए वह एक प्रामाणिक दस्तावेज है। यह प्रमाणित दस्तावेज उद्बोधकता के साथ-साथ भौगोलिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों को भी उजागर करता है । मैंने आचार्य तुलसी को बहुत निकटता से देखा है. उनसे कई बार चर्चाएं की हैं । उनके व्यस्त जीवन को देखने और परखने का सुअवसर मुझे मिला है। प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक निरंतर क्रियाशील बने रहना आचार्यजी की प्रतिभा और क्षमता का जीवंत इतिहास है। इतनी अधिक आयु में पहुंचने के उपरांत शायद ही कोई व्यक्ति चिर युवा बना रहे और अपनी श्रमशीलता तथा क्षमता को जीवंत और प्राणवान् बनाए रखे । आचार्यजी दिन भर व्यस्त रहते हैं-श्रमण-श्रमणियों को उपदेश देने में, आगंतुकों और अतिथियों से मिलने में, विशिष्ट व्यक्तियों से वार्तालाप करने में और समाज के बहुत बड़े वर्ग को उद्बोधन देने में। ऐसे व्यक्ति को स्वयं लिखने का समय कहां से मिलेगा? लेकिन जो उद्बोधन आचार्य तुलसी देते हैं, उन्हें नियमित रूप से रिकार्ड किया जाता है और फिर उनका पुस्तकों के रूप में प्रकाशन होता है। उनके ये सारे उद्बोधन किसी सृजनशील लेखन से कम नहीं हैं। उनकी भाषा-शैली जितनी सहज और सरल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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