Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 15
________________ प्राचार्य सोमकोति आचार्य सोमकीति इस काल के प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे । वे अपने युग के उदभर विद्वान प्रमुख साहित्य सेवी एवं सर्वोच्च सन्त थे । वे योगी थे। प्रात्म साधना में तल्लीन रहते और अपने शिष्यों एवं अनुयायियों को उस पर चलने का उपदेषा देते थे। वे प्रवचन करते, साहित्य सर्जन करते एवं अपने शिष्यों को साहित्य निर्माण करने की प्रेरणा देते । सोमकीर्ति प्राकृत, संस्कृत, राजस्थानी, गुजराती एवं हिन्दी के प्रकांड विद्वान थे । उन्होंने संस्कृत एवं हिन्दी दोनों ही भाषामों को अपनी रचनामों से उपकृत किया । उनका राजस्थान एवं गुजरात दोनों ही प्रमुख क्षेत्र रहे तथा जीवन भर इन क्षेत्रों में विहार करके जन-जन के जीवन को प्रात्म-मापना एवं अर्हद् भक्ति की प्रोर माइते रहे । उनका प्रेरणा से कितने ही मन्दिरों का निर्माण संपन्न हया । बीसों पञ्चकल्यागक प्रतिष्झाएं उनके निर्देशन में संपन्न हुई तथा हजारों जिन प्रतिमाएं प्रतिष्ठित होकर राजस्थान एवं गुजरात के विभिन्न मन्दिरों में विराजमान की गई। प्राचार्य सोमकीर्ति श्रमण संस्कृति, साहित्य एवं शिक्षा के महान् प्रचारक थे | ऐसे सन्त पर किस समाज एवं राष्ट्र की गर्व नहीं होगा। लक्ष्मीसेन के दो शिष्य थे। एक भीमसेन एवं दूसरे धर्मसेन । दोनों ने ही अपनी अलग-अलग भट्टारक मादियां स्थापित की थी। इन्हीं भीमसेन के सोमकीति प्रमुख शिष्य थे। काष्ठासंघ को एक गुरुनामावली में भीमसेन का परिचय निम्न प्रकार दिया गया है.. - श्री लक्ष्मसेन पट्टोधरण. पावक विपि नहीं । जे नरहरि नन्दिवि, श्री भीमसेन मनिवर सही ॥2॥ सरगिरि सिरि को चई पाउकरि प्रतिबलवंती कवि रणीयर तोर, पहत उय तरती। कोई प्रायास पभारण, हाथ करि गाहि कमतौ ।। कट्ठसंघ संघगुरण परिलहि विह कोईखेहतो श्री भीमसेन पट्टह धरण गच्छ सिरोमरिण कुलतिलो जाणाति सुजाराह जारण नर श्री सोमकीति मुनिबार भलौ ।। 314 सोमकीति भीमसेन के कब संग में पाये तथा प्रारम्भ में उनके पास कितने वर्षों तक रहे इसकी जानकारी नहीं मिलती। इसके अतिरिक्त सोमवीति के मानापित्ता, जन्मस्थान, एवं शिक्षा-दीक्षा के बारे में भी कोई इतिहास उपलब्ध नहीं होता। लेकिन इतना अवश्य है कि उन्हें मंवत् १५१में काष्टासंघ नन्दीतट गच्छ की भट्टारक गादी पर अभिषिक्त किया गया था । उस दिन आषाढ़ सुदी अष्टमी थी।

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