Book Title: Acharya Somkirti Evam Brham Yashodhar
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur

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Page 13
________________ पूर्व पीठिका इस भाग में संवत १५१५ से १५६० तक होने वाले पांच हिन्दी जैम कवियों का जीवन, निहाल एवं उनका गुस्साह प्रस्तुत किया जा रहा है। ये कवि हैं माघार्य सोमकीति, सांगु, यश-कीर्ति, गुरणकीति, एवं ब्रहा यशोधर । इसके पूर्व दूसरे भाग में हमने संवत् १५४० से १६०० तक के प्रतिनिधि कवियों-बूपराज, छीहल, ठक्कुरसी, चतुरुमल एवं गारवदास का जीवन परिचय एवं उनकी कृतियों का मूल्यांकन प्रस्तुत किया था साथ ही में उन कवियों की सभी छोटी बड़ी कृतियों के के पाठ भी दिये थे जिससे सभी पाठक गण उसके काव्यों का रसास्वादन कर सके। संवत् १५१५ से १५६० तक के काल को हिन्दी साहित्य के इतिहास में दो भागों में विभक्त किया है । मिश्रबन्धु विनोद ने संवत् १५६० तक के कास को मादिकाल माना जाता है तथा १५६१ से प्रागे वाले काल फो प्रष्टछाप कवियों के नाम से सम्बोधित किया है। रामचन्द्र शुक्ल ने भी इस काल का अष्टछाप नामकरण किया है। लेकिन वास्तव में यह काल भक्ति युग का आदिकाल था। एक पोर गुरु नानक एवं कबीर जंस संत कवि अपनी कुतियों से जन-जन को अपनी ओर धाकृष्ट कर रहे थे तो दूसरी मोर प्राचार्य सोमकीति, भट्टारक यश: कीर्ति, सांगु एवं ब्रह्म यशोधर जैसे हिन्दी भाषा के जैन कवि अपनी कृतियों के माध्यम से समाज में ग्रहद् भक्ति, पूजा, एवं प्रतिष्ठानों का प्रचार कर रहे थे। समाज में भट्टारक परम्परा की नींव गहरी हो रही थी। उनकी जगह-जगह गादियां स्थापित होने लगी थी । भट्टारक गग एवं उनके शिष्य भी अपने पापको भट्टारक के साथ-साथ मुनि, प्राचार्य, उपाध्याय, एवं ब्रह्मचारी सभी नामों से संबोधित करने लगे थे। साथ ही में वे सब संस्कृत के साथ-साथ राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना रहे थे । देश पर मुसलमानों का राज्य था जो अपनी प्रजा पर मनमाने जुल्म ढा रहे थे। ऐसी स्थिति में भी भट्टारकों एवं उनके शिष्यों ने समाज के मानस को बदलने के लिए तत्कालीन लोक भाषा में छोटे बड़े रास काम्यों, का पद एवं स्तबनों का निर्माण किया । दूसरे भाग में निर्दिष्ट कवियों के अतिरिक्त इन ४५ वर्षों में १५ से भी अधिक जैन एवं जनेतर कवि हुए जिनमें कुछ के नाम निम्न प्रकार है

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