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भरत चरित
२. भरतजी ने अपने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाकर कहा-तुम इस प्रकार तत्काल तेजी से कार्य शुरू करो।
३. विनीता नगरी के अंदर और बाहर के सारे कूड़े-कचरे को बुहार कर बाहर फेंको।
४. देखने में मनोरम लगने वाले ऊंचे-ऊंचे प्रचंड मंचों का निर्माण करो।
५. उन पर विविध प्रकार की पंचरंगी श्रेष्ठ और श्रेयस्कर वस्त्रों की ध्वजापताकाएं फहराओ।
६. आकाश में ऊंची उड़ने वाली ध्वजा पर ध्वजा एवं पताका पर पताकाएं बांधो।
७. ध्वजा-पताकाओं को स्थान-स्थान पर इस तरह लगाओ कि वे आकाश में लहर लहर कर सुशोभित हों।
८. दक्षतापूर्वक विविध प्रकार की ध्वजा-मंडपों में झाड़ लटकते हुए सुशोभित
हों।
९. गोशीर्ष एवं रक्त चंदन के पांच अंगुलियों सहित हाथों के छापे लगाओ।
१०. चंदन कलश तथा छोटे-छोटे घड़े भर-भर कर राहों एवं गलियों में छिड़काव करो।
११. सेला रस, अगर, अबीर, कस्तूरी की सुरभित गंध वहां उछालो।
१२. इस प्रकार पूरी विनीता नगरी में स्थान-स्थान पर अभिराम गंध फैलाओ।