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दोहा १. चक्ररत्न उत्पन्न होने की बात कानों से सुनकर भरत के कटिसूत्र, हार, कुंडल तथा मस्तक का मुकुट तक हिलने लगे।
२. हर्षित होने पर कानों के कुंडल, हृदय का हार तथा प्रलंब झूबणे भी हिलने लगे।
३. वे फूर्ती से सिंहासन से उठ कर नीचे उतरे। पैरों से पगरखी निकाल कर उत्तरासंग किया (दुपट्टे से मुंह को ढांक लिया)।
४. बद्धांजली मस्तक पर रखकर, सात-आठ कदम सामने जाकर, बायां घुटना धरती से थोड़ा ऊपर रखकर, दायां घुटना धरती पर रखा।
५,६. बद्धांजली मस्तक पर रखकर नमस्कार कर बधाई के रूप में शस्त्रागार के आरक्षक पुरुष को अपने मस्तक के मुकुट के अतिरिक्त सारे आभूषण उतारकर दे दिए। उसे आजीवन खाए-खर्चे इतना प्रीतिदान दिया।
७. उसे पूरा सत्कार-सम्मान देकर विदा किया। सिंहासन पर बैठकर विचार कर रहे हैं।
ढाळ:४
१. अब भरतजी चक्ररत्न के महोत्सव का आयोजन किस प्रकार से करते हैं उसे सुनें।