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सम्यक्त्व-अध्य० ४ उ. २
६२३ प्रणीता इत्यर्थः । अत एव-यङ्कानिकेताः वङ्कः असंयमस्तस्य आ-समन्तात् निकेताः आश्रयाः, अत एव-कालगृहीताः कालेन-मृत्युना गृहीताः-पुनःपुनर्मरणदुःखभागिनः, यद्वा-कालगृहीताः-गृहीतः कालो यैस्ते कालगृहीताः, आपलानिप्ठान्तस्य परनिपातः, धर्माचरणाय कालाभिसन्धायिनः-'वृद्धावस्थायां परुन् वा परारि या तनयदुहितपरिणयानन्तरं वा धर्म करिष्यामः' इत्येवं संकल्पकारिण इत्यर्थः । अत एव निचये निविष्टाः अव्यतो हिरण्यायुपचये, भावतः कर्मोपचये निविष्टाः संलग्नाः सन्तः, पृथक पृथक् अन्यामन्याम् जातिम्=एकेन्द्रियादिकाम् अनन्तवारं प्रकल्पयन्ति विना, इच्छाओं पर अंकुश नहीं हो सकता है, यह निर्विवाद सिद्ध है। जहां नक प्रवृत्तिमार्ग है वहीं नक संसार है। निवृत्तिमार्गकी प्राप्ति ही मंसारका माक्षात् या परम्परारूपसे अन्त है। इच्छाओं पर विजय पाना यही तो संयमभाव है। इसके विपरीत असंयमभाव है। असंयमी जीव धर्मकी प्राप्ति करने में काल-समयका बहाना किया करते हैं"अभी नो जवानीका समय है सांसारिक आनन्द भोग लूं, वृद्धावस्था आने पर धर्म धारण कर लूंगा । अथवा आगामी वर्ष में या उसके बाद के वर्ष में अथवा पुत्र-पुत्रियों का विवाह करके फिर धर्म करूंगा।" इस प्रकार का विचार करते २ ही वे काल के ग्रास बन जाते हैं और धर्मके लाभ से वंचित रह जाते हैं । विपयेच्छा के आधीन बना हुआ संसारी मनुष्य जिम किमी प्रकारस हिरण्य-सुवर्णादिक परिग्रहके मंचय करने में ही अपने जीवन के अधिकांश भाग को नष्ट कर देता है, और उपाजिन कर्मानुमार एकेन्द्रियादिक योनियोग अनंतवार जन्ममरण के अनंत નધી. તે નિવિવાદ સિદ્ધ છે. ત્યાં સુધી પ્રવૃત્તિમા છે ત્યા સુધી સરકાર છે. નિવૃત્તિની પ્રાપ્તિ સંગારને સાકાતું સાગર પરંપરાથી અંત છે. છાઓ ઉપર વિજય શાળવે તે જ સમયમ–ભાવ છે. તેથી વિપરીત અસંયમભાવ છે. - વા મી ક પની પ્રાપ્તિ કરવામાં સમયનું બહાનું બતાવે છે–ડવ, તો
मीन: 4.4, HR: .. 3, 441 -य५७ी १.२९ ।। १. १९३३ -
ना. मारना नाम ५५ पुर-
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