Book Title: Acharanga Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 739
________________ ६६४ आधाराणसूत्रे उक्तार्थमुपसंहरन्नाह--' तम्हा' इत्यादि । मूलम्-तम्हाअतिविजो नो पडिसंजलिज्जासि-त्ति बेमि ॥सू०१०॥ छाया--तस्मात् अतिविद्वान् न पतिसंज्वले:-इति ब्रवीमि ॥ म० १० ॥ टीका--हे शिष्य ! तस्मात् यतः क्रोधादिकपायवान् अनन्तदुखं प्राप्नोति तस्मात्, त्वम्-अतिविद्वान्-आहेतागमपरिशीलनजनितसम्यग्ज्ञानवान् सन् न प्रतिसंज्वले क्रोधवह्निनाऽऽत्मानं न प्रतापयरित्यर्थः । कपायेषु क्रोधस्य प्राधावह सर्वघाति द्रव्य का अनन्तवां भाग होता है, और जो देशघाति द्रव्य है यह देशघाति द्रव्य का अनन्तबहुभाग होता है। इसमें भी देशघाति द्रव्य का बटवारा देशघाती प्रकृतियों में ही होता है, सर्वघाति द्रव्य का बटवारा सर्वघाती देशघाती दोनों प्रकारकी प्रकृतियों में होता है, और नौ नोकपायों को देशघानी द्रव्य ही प्राप्त होता है, सर्वघाती नहीं ॥ म०९॥ ___ उक्त अर्थका उपसंहार करते हुए सम्रकार कहते हैं-'तम्हा अतिविज्जो' इत्यादि। ___ जब यह निर्विवाद सिद्ध है कि क्रोधादिक कषायवाले जीव अनन्त यातनाओं को इस लोक और परलोक में भोगते हैं तो हे शिष्य ! अर्हतप्रतिपादित आगम के परिशीलन से सम्यग्ज्ञानसंपन्न होते हए तुम क्रोधरूप अग्नि से अपनी आत्मा को कभी भी प्रज्वलित नहीं करना। यहां અન તમે ભાગ હોય છે, અને જે દેશઘાતિક દ્રવ્ય છે તે દેશઘાતિક દ્રવ્ય અનત બહુભાગ હોય છે. આમ પણ દેશઘાતી દ્રવ્યની વહેંચણી દેશદ્યાતિ પ્રકૃતિમાં જ થાય છે, સર્વઘાતિ દ્રવ્યની વહેંચણી સર્વઘાતિ દેશઘાતિ અને પ્રકારની પ્રકૃતિમાં થાય છે, અને નવનકથાને દેશઘાતિ દ્રવ્ય જ પ્રાપ્ત થાય છે, સર્વ ઘાતિ નહિ ! સૂત્ર ૯ 31 याने GA२ ४२ता सूत्रा२४ छ-' तम्हा अतिविज्जो' प्रत्याहि. ત્યારે આ નિર્વિવાદ સિદ્ધ છે કે કોધાદિક કષાયવાળો જીવ અનંત યાતनामाने नाउमा भने ५२मा सागवे छे त्यारे शिष्य । अतिविद्वान्-मई त પ્રતિપાદિત આગમનના પશ્ચિલનથી સમ્યજ્ઞાનમ પન્ન થતાં તમે ધરૂપ અગ્નિથી પિતાના આત્માને કેઈ વખતે પણ સળગાવશે નહિ. આ જગ્યાએ કંધની પ્રધા

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