Book Title: Acharanga Sutra Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 764
________________ ६८७ %3 सम्यक्त्व-अध्य० ४. उ. ४ तेषां सत्यावस्थायिनां ज्ञानमाह-'साहिस्सामो' इत्यादि। मूलम्-साहिस्सामो नाणं वीराणंसमियाणं सहियाणं सयाजयाणं संघडदंसीणं आओवरयाणं अहातहा लोयमुवेहमाणाणं, किमाथि उवाही? पासगस्सन विज्जइ, नत्थि-त्ति बेमि ॥सू०११॥ ___ छाया-साधयिष्यामो ज्ञानं वीराणां समितानां सहितानां सदायतानां संघटदर्शिनाम् आत्मोपरतानां यथातथा लोकमुपेक्षमाणानां, किमस्ति उपाधिः पश्यकस्य ? न विद्यते नास्ति, इति ब्रवीमि ॥म० ११॥ ____टीका-तेषां वीराणां समितानां सहितानां सदायतानां संघटदर्शिनाम् आत्मोपरतानां यथातथा लोकमुपेक्षमाणानां ज्ञानम् अभिप्राय, साधयिष्यामः कथके पालन करनेवाले को 'समित,' आत्मकल्याण में उद्यमशाली अथवा ज्ञानादिक गुणों से युक्त को 'सहित', सर्वदा संयम की आराधना में सावधान को 'सदायत,' हेयोपादेय के विवेक से युक्त अथवा अव्यायाध आनन्दस्वरूप मोक्ष की अभिलाषावाले को 'संघटदर्शी' और कषायों से उपरत-निवृत्त जीवों को 'आत्मोपरत' कहते हैं। सू० १०॥ मोक्षमार्ग में रहनेवाले उन वीर-आत्माओं के ज्ञान के विषय में सूत्रकार कहते हैं:-सहिस्सामो नाणं' इत्यादि। हर वीर, ससित, सहित, सदायत, संघटदर्शी, आत्मोपरत, यथावस्थित लोक की उपेक्षा करनेवाले उन मोक्षमार्ग के पथिकों के ज्ञान के विषय में आगे कथन करेंगे। अभी तो इतना ही कहते हैं कि उन वीरादिविशेषणविशिष्ट आत्माओं के कर्मजनित कोई भी उपाधिनहीं है। ४२वावाने समित', यात्म४यामा अधम अथवा ज्ञाना िशुशोथी युतने 'सहित', सह सयमनी माराधनामा सावधानने 'सदायत', योपायना विवे४थी युमत व्यायाधमान स्१३५ माक्षनी मनिसाषावाणाने 'संवटेदी' मने पायोथी 6५२त-निवृत्त लवाने 'आत्मोपरत' हे छ. ॥सू० १०॥ મોક્ષમાર્ગમાં રહેવાવાળા તે વિર–આત્માઓના જ્ઞાનના વિષયમાં સૂત્રકાર छ" साहिस्सामो नाणं" त्यादि. समे , समित, सङित, सहायत, सघशी, मात्मा५२त मने यथाવસ્થિત લેડની ઉપેક્ષા કરવાવાળાં તે મોક્ષના પથિકેના જ્ઞાનના વિષયમાં આગળ કહીશું. હમણાં તો આટલું કહીએ છીએ કે તે વીરાદિવિશેષણવિશિષ્ટ આત્માએને કમજનિત (કર્મથી થનારી) કોઈપણ ઉપાધિ નથી.

Loading...

Page Navigation
1 ... 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780