________________
विषय
पृष्ठाङ्क हो! अथवा-जिसको यह सम्यक्त्यपरिणति नहीं है उसको साव
द्यानुष्ठानसे रहित करनेवाली विवेकयुक्त परिणति कहांसे हो ! ५९९-६०० २७ आठवें सूत्रका अवतरण और आठवां सूत्र ।।
६०० २८ इस सम्यक्त्वको जो मैंने कहा है उसे तीर्थङ्करोंने देखा है,
गणधरोंने सुना है, लघुकर्मा भव्यजीवोंने माना है। ज्ञानावरणीय के क्षयोपशमसे भव्यजीवोंने जाना है ।
६००-६०१ २९ नवम सूत्रका अवतरण और नवम मूत्र । ३० जिनवचनमें श्रद्धारूप सम्यक्त्वके अभावसे मातापिता आदिके
साथ सांसारिक संवन्ध रखता हुआ, मृत्युद्वारा उनसे वियुक्त होता हुआ, या शब्दादि विषयों में आसक्ति करता हुआ मनुष्य एकेन्द्रियादिक भवों में भटकता रहता है।
६०१ ३१ दशम भूत्रका अवतरण और दशम सूत्र । ३२ दिन-रात मोक्षप्राप्ति के लिये उद्योगयुक्त और सर्वदा उत्तरोत्तर
प्रवर्द्धमान हेयोपादेयविवेकपरिणामसे युक्त होते हुए तुम प्रमत्तों को-असंयतोंको आहत धर्मसे बहिर्भूत समझो; और पञ्चविध प्रमादोंसे रहित हो मोक्षप्राप्ति के लिये अविच्छिन्न प्रयत्न करो, अथवा-अष्टविध कर्मशत्रुओंको जीतने के लिये ,पराक्रम करो। उद्देशसमाप्ति ।
६०२-६०४ ॥ इति प्रथमोद्देशः ॥
६०२
॥ अथ द्वितीयोद्देशः॥ १ प्रथम उद्देशके साथ द्वितीय उद्देशका संवन्ध-प्रतिपादन; प्रथम
मूत्रका अवतरण और प्रथम सूत्र । २ जो आस्रव-कर्मवन्धके कारण हैं वे परिस्रव-कर्मनिर्जराके कारण
हो जाते हैं, और जो परिस्रव-कर्मनिर्जराके कारण हैं वे आस्रव
६०५