Book Title: Acharang Sutram Part 04
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ प्रकाशन हेतु आहोर नगर के श्रमणोंपासको से बातचीत कर ग्रंथ प्रकाशन के कार्य की अनुमति प्रदान करने की विनंती की। आहोर नगर के निवासीओं के आर्थिक सहयोग से यह कार्य परिपूर्ण हो सका है अतः सर्व संमति से इस भावानुवाद टीकाग्रंथ का “आहोरी" हिन्दी टीका नाम निर्धारित किया गया। ग्रंथमुद्रण का कार्य तत्काल प्रारंभ हुआ। करिबन अठारहसौ (9,800) पृष्ठ के विशालकाय आहोरी टीकायुक्त आचारांग सूत्र को तीन भाग में विभक्त करके प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। प्रथम श्रुतस्कंध के प्रथम अध्ययन स्वरूप प्रथम भाग का संपादन कार्य परिपूर्ण होने पर ग्रंथ का विमोचन आहोर नगर में वि.सं. 2059 में पूज्य गुरुदेव श्री जयप्रभविजयजी म.सा. की निश्रा में कु. निर्मला के दिक्षा महोत्सव के पावन प्रसंग में किया / गया। प्रथम श्रुतस्कंध के शेष भाग को द्वितीय विभाग में संपादित करने की विचारणा चल रही थी किन्तु अचानक दिनांक 31 दिसम्बर, 2002 के दिन पूज्य गुरुदेव श्री के शरीर में अस्वस्थताने भीषण रूप ले लिया। पूज्य गुरुदेव श्री अपने आयुष्य की अंतिम क्षण तक समाधि भावमें रहते हुए नश्वर देह का परित्याग करके स्वर्गलोक पधार गए। . इस विषम परिस्थिति में ग्रंथ प्रकाशन के कार्य में थोडा विलंब हुआ किन्तु शेष कार्य को पूर्ण करने के लिए परम पूज्य उपाध्याय श्री सौभाग्य विजयजी म.सा, की पावनकारी प्रेरणा ने हमारे उत्साह की अभिवृध्धि की। ग्रंथ प्रकाशन कार्य को गतिप्रदान करने के लिए श्री शांतिलालजी मुथा का सहयोग व मार्गदर्शन प्रशंसनीय है तथा श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वेतांबर पेढी (ट्रस्ट) श्री मोहनखेडा तीर्थ का सहयोग भी अनुमोदनीय रहा एवं इस महाग्रंथ को मूर्त रूप प्रदान करने में विद्वद्वर्य आगमज्ञ पंडितवर्य श्री रमेशचंद्र लीलाधर हरिया का सहयोग अनुमोदनीय रहा। उन्ही के अथक प्रयास से यह कार्य परिपूर्ण हो पाया है। इस चतुर्थ विभाग में द्वितीय श्रुतस्कंध का संपूर्ण भाग भावानुवाद के साथ मुद्रित किया गया है..... अर्थात् आचारांग सूत्र सटीक ग्रंथकी आहोरी हिंदी टीका भागः 1-2-3-4 में संपूर्ण प्रकाशित होने जा रहा है..... कि- जो यह ग्रंथरत्न आपको पंचाचार समझने एवं आचरणमें लागे के प्रयोगमें अवश्य उपयोगी बनेगा ऐसा हमारा मानना है... इस ग्रंथ संपादन कार्य में सावधानी रखी गई है तो भी यदि कोइ क्षति रह गइ हो तब सुज्ञ वाचकवर्ग से हमारी विनम विज्ञप्ति है कि-सुधार ले एवं हमें निवेदित करें... सुज्ञेषु किं बहुना ? भीनमाल (राजस्थान) दिनांक : 20-7-2007 निवेदक मुनि हितेशचंद्रविजय